सब अपनी - अपनी ज़िन्दगी में हुए,
संजीदा से हादसों के गवाह है राजन !
ज़िंदादिल कौन लग सके रोज - रोज,
ज़िंदा होते हुए मुर्दे से तबाह है राजन !
झूट की ताज़पोशी से खिलते ये चेहरे,
अंदरूनी आह तलक बाहरी वाह है राजन !
चंदन के पेड़ सी ज़िन्दगी को लपेटे सर्प से,
एक खुशबू के पीछे भागते दर्द की चाह है राजन !
किसके हिस्से में कौन - कौन आया यही देखते हैं,
इनके वज़ूद की पैमाइश करती इनकी निगाह है राजन !
ख़ज़ाने में सिक्कों से खनकते है लोग ये दुनियावी छलावे से,
उस एक शक्तिमान शिकारी की हम सभी शिकारगाह है राजन !
© राजन डायरी ✍
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जिनके मुँह ना लग सका राजन, मैं उनके भी गले लग गया !
बुराई का दानव मारते - मारते एक आदमी भले यूँ लग गया !!
© राजन डायरी ✍— % &-
जिसने मुझमें यूँ की बस कमी देखी,
क्या उसने मेरे दिल की कभी ज़मीं देखी !
मैं तो सुलह कर बैठा उस भोली सूरत से,
उस मासूम की सीरत मैंने भी बस अभी देखी !
© राजन डायरी ✍— % &-
वो रो देंगे यूँ, जो हम उनसे कुछ कह देंगे,
ये बात समझ हम डर जाते हैं !
मुमकिन है क्या मोहब्बत में जुदाई ही हों,
दिल के कहने से, उन पर जीते 2 मर जाते हैं !
© राजन डायरी ✍— % &-
दुनियावी फलसफ़ा !
मुझसे दूर नुक़सान,
मुझे पढ़ने से नफ़ा !
© राजन डायरी ✍-
तो राजन ह्रदय की !
टूटे दिल जोड़ने में जो किंचित भी प्राप्त विजय की !!
© राजन डायरी 💔-
यादों का सिलसिला राजन,
आज भी मंत्र मुग्ध करता है !
जो भी ख़ुशी के पल रहे,
उन सभी को लुप्त करता है !
कमाया तो सिर्फ़ पैसा ही,
ख़ुशी कमाना प्रबुद्ध करता है !
दुनिया खर्चीली, रिश्ते भी,
सस्ती ज़िन्दगी ख़ब्त करता है !
मुझको जो भी अच्छा लगे,
ये हरदम उसी को ज़ब्त करता है !
याद ख़ुशग़वार भी, ग़मी भी,
याद बस याद ही है रब्त करता है !
कितना भी भूल जाए, या ना,
यादों का सिलसिला बस दग्ध करता है !
याद की याद आए और दिल ना तड़पे,
याद में दिल राजन भावों के शब्द करता है !
© राजन डायरी ✍-
आपको आराध्य मानकर महादेव,
माँ सती स्वयं से हीं अवगत हुई !
आपके ॐ स्वर से प्रकंपित सृष्टि,
अंतरिक्ष की वायु झंझावत हुई !
महानता की सीमा से उच्च आप,
विकट महायोग से सबकी गत हुई !
वरद हस्त उठाओ आशीर्वाद रूपेण,
जिससे विपदाएं सब भूमिगत हुई !
आप भूले हमें या हम भूले आपको भोले,
आपके सम्मुख होते कैसी ये आफत हुई !
हमारे पास में कुछ भी ना सिवा शिवार्चन के,
आपका भोग तो महाभोग है, हमसे यूँ ना लागत हुई !
ध्यान दीजिए महादेव, हम लम्पट, महाअज्ञानी हैं,
आप तो सर्वज्ञ हैं आदिदेव, आप ही से परमागत हुई !
हम क्रोधी नश्वर, आप साक्षात महारुद्र, अनीश्वर हैं,
हम बिख़रे तो आप ही समेटे, आप से ही सुसंगत हुई !
© राजन डायरी 🕉-
वो ही रंग चढ़ रहा है !
जो सुंदर आँखों को भाया,
वही इन मासूम आँखों में गड़ रहा है !
कौन कोंध रहा मन में हर्ष सा,
जो द्वेष बन कर राजन उमड़ रहा है !
मेरा राग किसका विरोधाभास बना,
मेरा प्रेम ह्रदय में परन्तु जड़ रहा है !
© राजन डायरी ✍-
समय पर नहीं मिलता अपनत्व,
सभी के अंदर व्याप्त मोह तत्व !
फिर भी दृश्य विरोध के जकड़े,
ह्रदय संकुचित विलोपित घनत्व !
डाह, राग, द्वेष से व्याकुल वसुधा,
किंचित भी समरस नहीं सतत्व !
आहः घेर कर खड़ी सबला सी,
निर्बल मनुज तज रहे पंचतत्व !
राधे तुम बस इतना समझा दो,
कृष्णधरा क्या समाहित कृतत्व !
© राजन डायरी ✍-