मैं सीख रहा हूँ, खुद में जीना,
चुप चुप रहना, कुछ ना कहना।
क्या मेरी खामोशियाँ कभी,
तुमको रास आएँगी या कहीं ये भी,
गुमनामियों में खो जाएंगी।।-
मैं ही क्यों याद करूँ,
हरपल फरियाद करूँ।
उसकी अनकही बातों में,
क्यों आपने जज्बात भरूँ।
मैं ही क्या कमजोर हूँ,
जो उसको मैं एहसास करूँ।।-
कभी मिले हो उनको,
जो सोचते हैं तुमको।
उन्ही खुशियों मे अक्सर,
वो आकर खो जाते हैं।
तुम अपना सोचते हो,
वो दूर हो जाते हैँ।
तुम खुशियाँ खोजते हो,
वो मजबूर हो जाते हैँ।
तुम गम मे डूबते हो और,
वो मशहूर हो जाते हैँ।।-
छुपने की कोशिश बहुत की,
तुमसे खेले आँख मिचौली।
इतनी उलझन देके भी हम,
जीत ना पायें, ऐ हमजोली।-
वो बात भी मतलब से करता हैँ,
मुझे फिर भी अच्छा लगता हैँ।
वो हर पल उलझा रहता हैँ,
मुझे सुलझाना अच्छा लगता हैँ।
वो दूर रहके भी पास दिखाता हैँ,
मुझे दूर जाना अच्छा लगता हैं।
वो खुश रहके भी दुखी बन जाता हैँ,
मुझे खुश रहना अच्छा लगता हैँ।
वो मतलब से मिलता हैँ,
मुझे मिलने मे मतलब आता हैँ।।-
हर शख्स बदलता मौसम था,
हर मन मे एक अंगड़ाई थी।
हम छुपके उनको देख रहें थे,
उनके मन मे एक गहराई थी।
ना पाना था, ना खोना था,
सिर्फ अंतर्मन की लड़ाई थी।
कुछ मन मे मन की दुरी थी,
उसने वो भी आज मिटाई थी।-
तुम- मेरे जीवन की शुरुआत हो,
या अंत या फिर जीवन प्रयन्त।
कौन हो तुम?
तुम-मेरे लिए एक सपना हो,
या कोई अपना हो या हो षड़यंत्र।
कौन हो तुम?
तुम-मेरा प्रारबद्ध हो,
या मेरा आरम्भ हो या हो अंत।
कौन हो तुम?-
सुबह से शाम होते-होते,
अब थकने लगे हैँ.
उम्र के इस पड़ाव पर,
अब रुकने लगे हैँ।
जिंदगी के मुश्किल सवाल,
अब परेशान करने लगे हैँ।
सोचने पर उनके जवाब,
हैरान करने लगे हैँ।
कभी तो जिंदगी हमको,
एक कप चाय लगती थी।
अब तो जरा पानी भी,
अहसान करने लगे हैँ।।-
कोई देनदारी नहीं है,
कोई हिस्सेदारी नहीं है।
कोई अपना नही है,
कोई पराया नहीं है।
कोई प्यार भी नहीं है,
कोई तकरार भी नहीं है।
कोई कहानी नही है,
किसी को सुनानी नहीं है।
फिर भी क्यों, तुम जीवन मे,
उलझाए रहती हो।-
जो हमसे दूर हैँ,
वही हमारे पास है।
उन्ही की दुआओं से,
अपने पर विश्वास हैँ।।-