Amit Kumar Mishra   (अमित मिश्र (मुकुंद))
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Joined 17 February 2019


Joined 17 February 2019
5 AUG AT 0:15

मेरी उलझन को वो हर पल,
अपने परिचय से सुलझाती हैँ।
मेरी हर बातों का उत्तर वो,
संयम से दे जाती हैँ।
कितनी बंद आँखें कर लो,
फिर भी वो राह दिखलाती हैँ।
मेरी हर गलती पर मुझको,
एक नया सबक सिखाती हैँ।
कितनी भी कठिन ड़गर हो,
मेरी राह आसान बनाती हैँ।
कभी सोचता हूँ, मैं हर पल,
इनमे, कहाँ से बुद्धि आयी हैँ,
फिर मुझको अहसास हुआ कि,
प्रभु नें, मेरे लिए ही बनायी हैँ।।

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29 JUN AT 17:56

मेरे घर में एक प्राणी रहता हैँ,
वो अपने को पापा कहता हैँ।
खूब कमाता हैं हर दिन,
पर बदहाली में रहता हैँ.
हमें नये जूते दिलवाता,
खुद फ़टे जूते सिलवाता हैँ।
हमें महंगे कपडे दिलवाता,
खुद सस्ते लेकर आता हैँ।
हमें सौ रुपये खर्च को देता,
स्वयं दस दस रुपये बचाता हैँ।
हमारी जिद्द पूरी कर देता हैँ,
खुद जिद्द अपनी छोड़ आता हैँ।
हर बात पर बड़ा होने की,
सब पर धौन्स जमाता हैँ।
मेरे घर में एक प्राणी रहता हैँ,
वो अपने को पापा कहता हैँ।

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24 JUN AT 9:42

खुशियाँ तुम्हारे द्वार रहें,
खुशियों का अम्बार रहें।
महक तुम्हारे जीवन में,
हर पल बरकरार रहें।
दुःख तुमसे कोसो दूर रहें,
सुख की हमेशा बहार रहें।
जन्मदिन के उपलक्ष्य में,
यही प्रार्थना बरकरार रहें.
"जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाये"

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19 JUN AT 20:04

शब्दों में बात करते हैं,
मन से वो याद करते हैँ।
बिन मौसम जाने बिना,
वो बरसातों की बात करते हैँ।
शब्दों से घेरे रहते हैँ,
मन को वो फेरे रहते हैँ।
उलझन में उलझें रहके भी,
सिर्फ तेरे ही तेरे रहते हैँ।

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19 APR AT 22:31

मैं सीख रहा हूँ, खुद में जीना,
चुप चुप रहना, कुछ ना कहना।
क्या मेरी खामोशियाँ कभी,
तुमको रास आएँगी या कहीं ये भी,
गुमनामियों में खो जाएंगी।।

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13 APR AT 23:01

मैं ही क्यों याद करूँ,
हरपल फरियाद करूँ।
उसकी अनकही बातों में,
क्यों आपने जज्बात भरूँ।
मैं ही क्या कमजोर हूँ,
जो उसको मैं एहसास करूँ।।

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3 APR AT 22:55

कभी मिले हो उनको,
जो सोचते हैं तुमको।
उन्ही खुशियों मे अक्सर,
वो आकर खो जाते हैं।
तुम अपना सोचते हो,
वो दूर हो जाते हैँ।
तुम खुशियाँ खोजते हो,
वो मजबूर हो जाते हैँ।
तुम गम मे डूबते हो और,
वो मशहूर हो जाते हैँ।।

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2 APR AT 23:51

छुपने की कोशिश बहुत की,
तुमसे खेले आँख मिचौली।
इतनी उलझन देके भी हम,
जीत ना पायें, ऐ हमजोली।

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25 MAR AT 0:05

वो बात भी मतलब से करता हैँ,
मुझे फिर भी अच्छा लगता हैँ।
वो हर पल उलझा रहता हैँ,
मुझे सुलझाना अच्छा लगता हैँ।
वो दूर रहके भी पास दिखाता हैँ,
मुझे दूर जाना अच्छा लगता हैं।
वो खुश रहके भी दुखी बन जाता हैँ,
मुझे खुश रहना अच्छा लगता हैँ।
वो मतलब से मिलता हैँ,
मुझे मिलने मे मतलब आता हैँ।।

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13 MAR AT 23:13

हर शख्स बदलता मौसम था,
हर मन मे एक अंगड़ाई थी।
हम छुपके उनको देख रहें थे,
उनके मन मे एक गहराई थी।
ना पाना था, ना खोना था,
सिर्फ अंतर्मन की लड़ाई थी।
कुछ मन मे मन की दुरी थी,
उसने वो भी आज मिटाई थी।

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