Amit Kumar Mishra   (अमित मिश्र (मुकुंद))
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Joined 17 February 2019


Joined 17 February 2019
12 APR AT 22:50

मेरे भटके मन को वह,
अब ख्याल करने लगा।
मेरे अपने सवालों का,
अब वो जवाब देने लगा।
प्रश्न जितने, थे हमारे ,
वो, अब हल करने लगा।
मेरी अनकही बातों मे भी,
अब वो खोने लगा ।
कितना इंकार कर ले हम,
मन बेकरार होने लगा।
जिन्दगी से, अब हमें,
फिर, प्यार होने लगा।

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7 APR AT 10:14

इस नये शहर मे, पहचान ढूंढते हैं,
तुमसे मिलने के बाद, अंजाम ढूंढते हैं।
वो यादें जो संजोये रखी थी हमने,
उन्ही यादों मे हम, इंतकाम ढूढ़तें हैं।

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25 MAR AT 18:32

सुनो, कुछ रंग संभाल के रखना,
सपनों मे हम, आएंगे जरूर,
फिर कोई बहाना, ना हो,
होली का रंग लगाएंगे जरूर।।

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16 MAR AT 0:23

सोचता हूँ क्या लिखूं,
क्या मे तुमको कहूँ,
मेरा कितना हक़ हैं तुमपे,
कितना तुमको कह सकूँ।
कितनी बातें, तुमसे करूँ,
कितना तुम बिन रहूँ।
अपनी हर बातों मे,
कितना तुम्हारा जिक्र करूँ।
कितने पल याद करूँ,
कितनी यादें दिल मे रखूँ,
तुम्हे सामने पाके मे,
अपने को खुशनसीब समझूँ।
तुम मुझे चाहे भूलो,
तुम्हे हर पल याद करूँ,
तुम्हारे गुस्से को भी मे,
प्यार की सौगात समझूँ।

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21 FEB AT 22:13

मेरी क्या कीमत हैं,
ये मुझको तब समझ आया।
ज़ब पूछ कर वो हाल हमारा,
दूर हमसे जा बैठे।
हमने समझा इसको दुरी,
और वो महँगा हैं, बता बैठे।

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6 FEB AT 23:30

मैं ठहर गया था राहों मे,
तुमसे, उस पल मिलने को।
तुमने, लेकिन साथ छोड़ के,
मजबूर कर दिया चलने को।
आधे अधूरी राहों मे,
मैं आगे बढ़ता रहता था,
अपने मन के अंतरद्वन्द से,
अक्सर लड़ता रहता था।
ख्वाहिशों को लेके अपनी,
राहों मे फिर हम निकल पड़े,
वही रास्ते, वही मंज़िल थी,
फिर भी, हमसे वो दूर खड़े।।

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28 JAN AT 22:54

क्या हुआ, जो हर पल याद आती हैं,
क्या हुआ, जो उनकी बातें भाती हैं।
क्या हुआ, जो दूर हमसे चल दिए,
क्या हुआ, उन्हें नाराज़गी आती हैं।
क्यों हुआ, यें हमने उनसे जान लिया,
होना ही था,ज़ब हमने उनको मान दिया।
गलती अपनी थी,जिसे हमने मान लिया,
सच तो यें हैं, कि हमने भी पहचान लिया।

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23 JAN AT 22:12

बिना बात के बात बनाना,
कितने दिन चल पायेगा।
खामोशियों से भरे शहर मे,
चीख कौन सुन पायेगा।
हमें शिकायत उनसे रहती,
दूर कौन कर पायेगा।
यें अजनबियों का शहर हैं,
यहाँ अपना कौन कहलायेगा।।

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22 JAN AT 22:33

हमारे साथ श्री रघुनाथ तो
किस बात की चिंता ।
शरण में रख दिया जब माथ तो
किस बात की चिंता ।
किया करते हो तुम दिन रात क्यों
बिन बात की चिंता ।
किया करते हो तुम दिन रात क्यों
बिन बात की चिंता ।

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18 JAN AT 22:29

वो कहके भी, चुप बैठा था,
चुप रहकर भी, वो बोल गयी।
अंतः करण मे रहकर भी,
उसकी बातें बोल गयी।

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