Amit Kumar   (© मुरीद)
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Joined 24 January 2020


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Joined 24 January 2020
24 OCT 2024 AT 18:44

जो आकर्षण के भाव से
प्रारम्भ होता है। ये तब
तक उपस्थित रहता है
जब तक समर्पण का भाव
व्याप्त रहे पर जैसे ही
किसी अभिलाषा की कामना
होने लगे तो समझ लेना कि
अब ये व्यापार में परिवर्तित हो रहा है।
क्योंकि व्यापार अपेक्षा पर ही आधारित होता है।
हाँ इसे आप मानवीय प्रेम अवश्य कह सकते हैं,
यदि इसे इस दृष्टि से देखते हैं तो।

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22 AUG 2024 AT 21:35

कभी-कभी, दिल करता है
के किसी ऐसे सफर पे निकला जाये
जो कभी ख़त्म ही न हो
बस यूँ ही चलते रहें
बिना किसी मकसद के...

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10 AUG 2024 AT 23:41

सब कुछ कर ज़िंदगी में
पर कोई उम्मीद न कर
कर ले तू ख़ुद से इश्क़
पर ये किसी से न कर
ये वो शराब है
जो पहले आदी बनाता है
पर बाद में बहुत तड़पाता है

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6 AUG 2024 AT 22:29

काश!
काश, अगर ये ज़माना न होता
कितने सारे मस'अले, हल हो जाते💔...

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23 MAY 2024 AT 19:47

करते हैं सफ़र तो गर्दिश नज़ारा हो जाता है
जो था अभी नज़र में वो सितारा हो जाता है

ऐ वक़्त अब ऐसी वाबस्तगी भी अच्छी नहीं
तू मेरा नहीं पर सबका दोबारा हो जाता है

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8 FEB 2024 AT 19:28

कोई तलाश है ऐसी कहीं
है नज़र में मेरे पर सफ़र नहीं

शामिल कर लूँ क्या सफ़र में इसे
है तो कुछ असर सा, बा-असर नहीं

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30 JAN 2024 AT 20:07

कभी बैठेंगे साथ तेरे, और वक़्त भी ऐसे गुज़ारेंगे
मिले तो थे पहली दफ़ा, तुझे अब दिल में उतारेंगे

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25 JAN 2024 AT 21:13

इश्क़ की ये महक ऐसी है
गर चाहो तो बिखर जायेगी
बस इक तरफा सफर नहीं
रूक कर कहीं ठहर जायेगी
पस-ए-मंज़र तो ज़रूरी है
नहीं तो तन्हा, कर जायेगी
शुरू में दो-धारी तलवार है
पर आगे आबाद कर जायेगी

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25 JAN 2024 AT 20:29

दिल है तन्हा, तन्हा ही रूलाता है
जाने कैसा भंवर है, यादों का तेरे
हर दफ़ा ये अपने पास बुलाता है

संभाले थे टुकड़े दिल के, सीने में
ज़िक्र क्या हुआ बस नाम का तेरे
और फर्श पे बिखरा नज़र आता है

तुझे दी हैं सदायें तेरा नाम ले के
पर वक़्त की साज़िशें तो देखो
हर दफ़ा ये जैसे लौट आता है

अब ज़र्रा-2 सवाल सा करते हैं
जितना तू जिसे याद करता है
क्या उसको भी कभी आता है?

अब लाज़िम है और वाजिब भी
कोई शख़्स किसी के दिल में है
फिर इतना उसे क्यों रूलाता है?

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19 JAN 2024 AT 17:46

कोई ऐसा जहान रहता है
सुब्ह होती है यादों से, अज़्मत में अज़ान रहता है
दिल है परसतिश में, हाथ इश्क़ का क़ुरान रहता है
चाँद कभी दिखा नहीं, दिल है बस रमज़ान रहता है

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