अमित कुमार सिंह   (Amit Anant)
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Joined 17 December 2016


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Joined 17 December 2016

जिनकी विचारधाराएं इस देश की युवाओं के जिदंगी की थीम होनी चाहिए...उन्हीं पर ये भद्दे मीम बना रहे।


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सुनने में अब ऐसे क़िस्से ना आएं
सरवत जैसे ट्रेन के नीचे ना आएं

हाथ छुड़ाकर जाने वाले जाएं सब
हाथ छुड़ाकर आने वाले ना आएं

इल्म है रस्तों का पर हम तो भटकेंगे
लोग हमारे पीछे-वीछे ना आएं

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तुम्हारी दीद वो ईंधन है
जिससे मेरी ज़िंदगी का पहिया घूमता है

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बात जो भी अनकही है....कहिए
एक ही तो ज़िन्दगी है...कहिए

रास्ते दो हैं पर मंज़िल है इक
फ़लसफ़ा भी शाइरी है....कहिए

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तुम्हारे हाथ की रेखाएं
जब मेरे हाथ की रेखाओं से लिपटी
तब इल्म हुआ
हाथ पकड़ने और थामने में
उन्नीस-बीस का फ़र्क़ होता है

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पल पल तुझको याद करेंगे
ऐसे दिन बर्बाद करेंगें

अब अपना ही दिल तोड़ेंगे
अपना ही दिल शाद करेंगे


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ख़ूबसूरत हादसे पे ग़ौर कर
इश्क़ के उस वाकिए पे ग़ौर कर

बेवफ़ा बेशक़ तू उसको कह मगर
पहले तू अपने किए पे ग़ौर कर

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खिड़कियां अब हैं विरह के गीत गाती
लौटकर दर से हमारे क्या गए तुम

हिज्र तो असली मज़ा है इश्क़ का और
हिज्र के बस ज़िक्र पे पगला गए तुम

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क्या-क्या तूने सोचा लिख दे
या फिर जो है भोगा लिख दे

इक मंजर है माँ बेटी का
चूम रही है माथा लिख दे

बचपन भीगा-भीगा लिख दे
यौवन प्यासा-प्यासा लिख दे

सावन,पतझड़,गर्मी,जाड़ा
सब मौसम बे-रस्ता लिख दे

आँखें उसकी झरने सी है
और बदन गुलदस्ता लिख दे

हमको दुनिया से क्या मतलब
इक तुझ से वा-बस्ता लिख दे

क्या खाकर ज़िंदा है अबतक?
धोका,धोका, धोका लिख दे









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जो सोचते हैं अपना भला
मुझे उनसे प्यार है

सिर्फ अपना भला सोचने वाले लोगों से
मैं नफ़रत करता हूं

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