कहां हैं वो बात बात पर देश के संविधान को खतरे में बताने वाले बॉलीवुड माफिया व बुद्धिजीवी वर्ग के लोग??? वो फ़ासिज़्म पर लंबी चौड़ी बातें बोलने वाले और वो बात बात पर कैंडल मार्च निकालने वाले और वो अवॉर्ड वापसी वाले भी तो नहीं दिख रहे?🔭अरे भाई किस बिल में छिपे बैठे हो..अभी आपका जमीर नहीं जाग रहा? पर क्यूं?
अरे हां मैं तो ये भूल ही गया था कि आपका जमीर तो सिर्फ कुछ चुने हुवे मुद्दों पर अपनी सुविधा के हिसाब से ही जागता है!😂 सबको पता है कि कंगना के साथ हुई ज्यादती पर अब आप चुप्पी साध लेंगे क्यूंकि इस बार विरोध करना आपके एजेंडे को सूट नहीं करता। मगर हां याद रखना अगर ऐसा ही चलता रहा तो कल को महाराष्ट्र में सरकार बदलने पर आपके घर का भी नंबर आ सकता है, तब फिर अपने बार संविधान की दुहाई मत देने लगना। #Democracy #Kangana_Ranaut-
भारत रत्न अटल जी..आज मुझे आपका एक बेहद रोचक किस्सा याद आता है..जब संसद में आपकी पार्टी के महज दो सांसद हुआ करते थे और कांग्रेसी सांसद आपका उपहास कर रहे थे तब आपने विनम्रतापूर्वक कहा था कि आज हमारी संख्याबल कम होने पर आप हम पर हंस रहे है, पर इसी संसद में एक दिन ऐसा जरूर आएगा की जब दूसरे लोग आप पर हंसेंगे।
आपने उस वक़्त एक कविता भी सुनाई..."अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा।।"
यकीनन इन बातों की प्रासंगिकता आज हम सबके सामने है। आप राजनीति में रहते हुए भी हमेशा इस राजनीति की कीचड़ से दूर रहे। सत्ता के शीर्ष शिखर पे होते हुए भी कभी आपको इस सत्ता व इसकी विलासिता का मोह नहीं रहा।-
“It is only in our darkest hours that we may discover the true strength of the brilliant light within ourselves that can never, ever, be dimmed.”
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"ऐ गम मुझे थोड़ा तो डिस्काउंट दे,
मैं तो तेरा रोज़ का ग्राहक हूं!!"-
"मिजाज़ यूं ही ना चिड़चिड़ा कीजिए,
कोई छोटी बातें करे...
तो जनाब दिल बड़ा कीजिए!!"-
"अजीब सी है ये जिंदगी.. इसे पढ़ना मेरे बस का नहीं,
इस जिंदगी को पढ़ने के लिए हज़ार जिंदगियां चाहिए!!"
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"मैं वही पानी हूँ जो सदियों से..सदियों से बह रहा हूँ। यूहीं निरंतर कभी कल-कल करते तो कभी छल-छल करते। मैं आज से पहले भी इतना बरसा हूं इतना खुलकर बरसा हूं कि गंगा भी मैं हूँ और समन्दर भी मैं...लेकिन आज चंद सिक्कों के खातिर हाथों में कैमरा लिए , कुछ लोगों ने मुझ पर ही सवाल उठा डाला। अरे मैं तो जीवन था और आप सबने मुझको ही आफत बता डाला। मैं तो निर्मल था, मैं तो पावन था, मैं तो शीतल था और मेरे माथे पर ही दाग लगा डाला। सच जानो मेरा यकीन मानो मैं कभी...कभी भी शहर के रास्ते पर नहीं गया...लेकिन लोगो ने ही मेरे रास्ते में शहर बना डाला और मुझे रास्ते में दिया...कुछ बंद सी गलियां और एक तंग सा नाला। अरे मैं तो जीवन था और मुझको ही आफत बता डाला। मैं तो पावन था मैं तो शीतल था और मेरे ही माथे पर आप सबने दाग लगा डाला!!"
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"ज़िंदा तू रख रूह अपनी...
देह का क्या वो तो दूसरी भी ढूंढ़ लेगा!!"-
"इक मुट्ठी बीज बिखेर दो,
दिलों की जमीन पर
बारिश का मौसम है ,
शायद मोहब्बत, अमन और चैन पनप जाये!!"-