अपने देश की शान बनो,
विश्व में एक नई पहचान बनो।-
जिंदगी जानेमन साहित्य ही जान है अपनी।
कुछ कर जाऊँ बस इतन... read more
इतिहास होने को चला है।
कई अच्छे बूरे यादों को समेटे चला है।
मैं नहीं जानता कि कैसे शब्दों में बयां करूं,
कैसे कैसे लम्हों को ये अपने साथ लिए चला है।-
साँसों की बची बाक़ी लम्हें उनके नाम कर दे
दे न पाया उनके रूह तलक को भी सुकून मैं,
ऐसा कर इस गुनाह के बदले मेरा इंतकाम कर दे-
"सोच" को "सच" में बदलने के लिए सिर्फ़ "ओ" ही आड़े आता है, और वो "ओ" है आपका:-
1. ओवर कॉन्फिडेंस का होना।
2.ऑब्सेस्ड न कर पाना।
3. ऑप्टिमिस्टिक न बन पाना।
4. ऑप्शन को तलाशते रहना।
5. ऑब्जर्व न करना।-
दिन सलीक़े से उगा रात ठिकाने से रही
दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही
चंद लम्हों को ही बनती हैं मुसव्विर आँखें
ज़िंदगी रोज़ तो तस्वीर बनाने से रही
इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
रात जंगल में कोई शम्अ जलाने से रही
फ़ासला चाँद बना देता है हर पत्थर को
दूर की रौशनी नज़दीक तो आने से रही
शहर में सब को कहाँ मिलती है रोने की जगह
अपनी इज़्ज़त भी यहाँ हँसने हँसाने से रही
#निदा फ़ाज़ली-
बीते हुए दिन ख़ुद को जब दोहराते हैं
एक से जाने हम कितने हो जाते हैं
हम भी दिल की बात कहाँ कह पाते हैं
आप भी कुछ कहते कहते रह जाते हैं
ख़ुश्बू अपने रस्ते ख़ुद तय करती है
फूल तो डाली के हो कर रह जाते हैं
रोज़ नया इक क़िस्सा कहने वाले लोग
कहते कहते ख़ुद क़िस्सा हो जाते हैं
कौन बचाएगा फिर तोड़ने वालों से
फूल अगर शाख़ों से धोखा खाते हैं
#वसीम बरेलवी-
घर से निकले तो हो सोचा भी किधर जाओगे
हर तरफ़ तेज़ हवाएँ हैं बिखर जाओगे
इतना आसाँ नहीं लफ़्ज़ों पे भरोसा करना
घर की दहलीज़ पुकारेगी जिधर जाओगे
शाम होते ही सिमट जाएँगे सारे रस्ते
बहते दरिया से जहाँ होगे ठहर जाओगे
हर नए शहर में कुछ रातें कड़ी होती हैं
छत से दीवारें जुदा होंगी तो डर जाओगे
पहले हर चीज़ नज़र आएगी बे-मा'नी सी
और फिर अपनी ही नज़रों से उतर जाओगे
#निदा फ़ाज़ली-
बुरा मत मान इतना हौसला अच्छा नहीं लगता
ये उठते बैठते ज़िक्र-ए-वफ़ा अच्छा नहीं लगता
जहाँ ले जाना है ले जाए आ कर एक फेरे में
कि हर दम का तक़ाज़ा-ए-हवा अच्छा नहीं लगता
समझ में कुछ नहीं आता समुंदर जब बुलाता है
किसी साहिल का कोई मशवरा अच्छा नहीं लगता
जो होना है सो दोनों जानते हैं फिर शिकायत क्या
ये बे-मसरफ़ ख़तों का सिलसिला अच्छा नहीं लगता
अब ऐसे होने को बातें तो ऐसी रोज़ होती हैं
कोई जो दूसरा बोले ज़रा अच्छा नहीं लगता
हमेशा हँस नहीं सकते ये तो हम भी समझते हैं
हर इक महफ़िल में मुँह लटका हुआ अच्छा नहीं लगता
#आशुफ्ता चंगेजी-
अपने मंज़िल के रास्ते में हैं दोस्त, अभी तक चलना नहीं छोड़ा है।
मानते हैं बहुत कुछ खो दिया हमने पर अभी तक हिम्मत नहीं हारा है।-
मेरी मुश्किलें कम न कर सको तो बढ़ाया भी मत करो!
ऐ ज़िंदगी अब और भी ज्यादा सताया मत करो!!
नींद चैन है कि अब कभी भी हमको आती नहीं,
गुजारिश है कि तन्हाई के आलम में उसकी याद अब दिलाया मत करो!!!-