Amit Gora   (अमित गोरा)
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Joined 22 September 2018


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10 FEB 2022 AT 13:13

आप वो निर्मम अपराधी हैं जिसने कभी नहीं देख़ी ललाट पर ख़िल्ली लालिमा की आकृति
~~~ अलबेली सांझ— % &

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6 FEB 2022 AT 13:23

इन पत्थर की वादियों में,
मेरी हवा में एक ख़िडकी हैं...
ज़ो तुम्हारी विरह में ना ज़ाने कब से ख़ुली पड़ी है...!!!
तुम एक रोज़ आओं और इस खिड़की को विरह से मुक्त करों...!!!

~~~ तुम्हारा साया— % &

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28 JAN 2022 AT 16:59

मैंने प्रेम सिख़ा उस स्त्री से,
जिसने कभी लांघी नहीं दहलीज़ घर की...!!!

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16 APR 2021 AT 17:13

गाकर लोरी मुझे आज़ फिर सुला दो ना,
अपने प्यार की इंतहा "मां" मुझे आज़ फिर बता दो ना...!!!

नसीब अच्छा लगा मुझे बचपन का,
"मां" थोड़ा सा आंचल आज़ मेरे लिए भी बिछा दो ना...!!!

आज़ चोट फ़िर लगी मुझे बड़ी नाज़ुक सी,
"मां" आज़ फिर मेरा आंसू अपनी पलकों से गिरा दो ना...!!!

आज़ मैं फ़िर खेलकर आया हूं अपने नन्हे दोस्तों के साथ,
"मां" आज़ फिर तुम मुझे बचपन जैसा नहला दो ना...!!!

आज़ फ़िर तलब लगी है मुझे मेरे हया_ए_लफ़ज़ो की,
"मां" आज़ फ़िर मेरी ज़िद को मना दो ना...!!!

मुझे बेकस सा खलने लगें आज़कल ये अज़ीज रिश्ते,
"मां" मुझे फ़िर से बचपन में ज़िना सिख़ा दो ना...!!!

मैं फ़िर डरने लगा हूं इस बेज़ान ज़माने से,
"मां" मुझे फ़िर अपनी गोद में छुपा दो ना...!!!

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19 JAN 2022 AT 10:27

जो सुबह की पहली चाय की प्याली हों,
मुझे हर बात पर हंसाने वाली हों,
अपने हर्फ को हर्फ दर हर्फ उठाने वाली,
मुझे प्यार से नहीं अपने अज़ीज़ इश्क से जगाने वालीं हों,
मेरी सांसों को रुह में रोकने वाली हों,
ख़ुद की आह को मुझमें समाने वालीं हों,
अपनी ‌सहलियों के नम्बर लाने वाली हों,
मुझे प्यार से नहीं इश्क से समझाने वालीं हों,
जों लौटकर नदियों की लहरों में ख़ो जाएं,
अपनी बेपनाह मोहब्बत को मेरी ओर मोड़ जाएं,
अधूरी ख्वाहिशों को खुद में मुक्कमल करने वाली हों,
मुझे प्यार नहीं इश्क करने वाली हों...!!!

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18 JAN 2022 AT 7:43

एक रात तन्हाई से मिली,
तु ओर मैं दूसरी तरफ़ थें,
इस तरफ़ के सारे फुलों ने तेरे लिए रेशम बटोरा,
जैसे चैत ने करवट ली हों...!!!

फ़िर भी तेरे होंठ कांप रहे थे मानों किसी को पूकार रहें हों,
फ़िर वो आया जिसकी हथेली पर तुमने एक आंसू रख़-कर फुल बनाया,
फ़िर उन फुलों ने तेरे लिए रेशम बटोरा,
जैसे चैत ने करवट ली हों...!!!

फ़िर भी तेरी आंखों में ख़्वाब था मानों किसी को सहलाने का ख़्वाब,
फ़िर वो एक हक़ीक़त से बोला,
तुमने अपनी आंखों के इशारे से उसे पूरा तोला,
उसके माथे के बिच बिंदी वाली जगह तुमने अपनी आंखों का स्पर्श किया,
एक फुल बनाया फिर उन फुलों ने तेरे लिए रेशम बटोरा,
जैसे चैत ने करवट ली हों...!!!

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16 JAN 2022 AT 9:25

मैं अपनी मन की व्यथा को राह पर समेटकर चला था,
मेरे सांसों की दहरी आहिस्ता से टूट गई...!!!

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13 JAN 2022 AT 7:59

कभी ख़ामोशीयों में लहलहाता बचपन बेज़ूबान सा गाता है,
उम्र की इस एक दहरी पर मुझे मां का आंचल बड़ा याद आता हैं...!!!

रौनकें गलियों की आज़कल बिन मुसकुराएं ही छुपतीं हैं,
वो दौर नन्हीं सी यादों का अब बड़ा याद आता हैं...!!!

रेत सी ख़ुशी की परवाह नहीं थीं ज़ब,
उन सांसों की आहटों पर ही अब तलक दिल मचल सा ज़ाता हैं...!!!

ख़बर कहां थीं की ख़्वाब भी ख़ंडर होंगे रिवाज़ बदल कर,
मगर वो मौसम आज़ सदीं में बड़ा भाता हैं...!!!

किस और सज़दें कर मांगू दुआएं उन यादों की,
किस्से कहूं की मुझे अब बचपन बड़ा याद आता हैं...!!!

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7 JAN 2022 AT 9:32

एक राह पर मंज़िल मूड़ी हैं,
एक राह पर ख़ुदा मुड़ा है,
कैसे निभाऊंगा साज़िश मोहब्बत की,
मैं रुक़ा हूं तों सफ़र मूड़ा हैं...!!!

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6 JAN 2022 AT 9:54

बहोंत हीं ख़ुबसूरत अहसास हैं ख़्वाबों का...
मंज़िल राह आसान होतीं हैं,
मगर टूटने का डर तालिम नज़र आता हीं हैं...!!!

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