विधा- त्रिवेणी
वज़्न- 122 122 122 122
स्वयं बुझके करती उजाला ये नारी
दे अमृत पिए विष का प्याला ये नारी!
वो सूखेगी इक दिन अगर जो है सरिता !!
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DOB: The same ... read more
सच में मासूम मुहब्बत गर पाना है
तो किसी बेज़ुबान के पास जाओ
इंसानों से अगर पाने की चाहत है
तो ए दोस्त! मासूम से दिल बहलाओ।-
धरा पर मेहनत की मिसाल
बस एक किसान है...
चुका सकता नहीं उसके उपज
का मूल्य कोई, ऐ किसान
तुझे प्रणाम है।-
ऐ ज़िंदगी! तेरा मुझसे क्या वाबस्ता है
जिस ज़ानिब जाता हूँ तेरा ही वो रस्ता है।
तू सरपट दौड़ती और भागती झटपट क्यों
ज़िम्मेदारियों तले दबा मैं, चाल मेरी आहिस्ता है।
तेरे ख़ार भरे राहों पर भी हँस कर चलेगा 'अमित'
आज मान लिया ख़ुशियों का मौसम गुज़िश्ता है।
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ग़ज़ल- 121 22 121 22
अभी मुहब्बत नई नई है,
अभी तो कुछ बातें अनकही है //१
है दर्द मेरा नया नया ये,
अभी से आँखों में ये नमी है //२
जवाँ अभी तू कहाँ हुई है?
ऐ जान! तू तो अभी कली है //३
हया में लिपटी तेरी जवानी,
बदन सनम तेरा मख़मली है //४
सनम बला की हो ख़ूबसूरत,
कि फीकी लगती ये चाँदनी है //५
मैं जानता हूँ दिवाना-पन है,
यकीन कर तू ही ज़िंदगी है //६
(अनुशीर्षक में पढ़ें 🙏)-
जमीं को वफ़ा की उम्मीद थी देखो आसमाँ से,
मुहब्बत होता है मुक़म्मल ऐसा बोलो कहाँ से,
एक के आड़े आ जाता सदा उसका ही गुमान,
दूसरी इतनी विस्तृत की परेशां अपने अना से।
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मैं जब भी देखती हूँ दर्पण
तेरा ही अक्स नज़र आता है।
जब पूछती हूँ नाम अपना
दर्पण तेरा ही नाम बताता है।-
समझोगे कहाँ तुम चाँदनी रात में
सरगोशियाँ क्यों है,
न समझोगे कभी तुम ये बीच रात में
बेचैनियाँ क्यों है,
कितनी शिद्दत है मुहब्बत में कहाँ
समझोगे जानम तुम-
जो कभी टूटा होता तुम्हारा दिल भी
न पूछते कि तन्हाईयाँ क्यों है।-
1222 1222 1222 1222
चलाती हो कभी खंज़र, कभी शमशीर क्यूँ जाना
ख़ता मेरी अगर जो थी, चुनी तस्वीर क्यूँ जाना....!!
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विधा: त्रिवेणी
मापनी- 1222 1222 1222 1222
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फ़लक को छोड़कर देखो ज़मीं पर आ रही बारिश,
कि सबको बाँट कर ख़ुशियाँ बहुत हर्षा रही बारिश।
किसानों को मगर फाँसी पे क्यों लटका रही बारिश?
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