Amit Deewan   (>>>> अमितांश 'अमित' <<<<)
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Joined 29 June 2020


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Joined 29 June 2020
25 JUN 2021 AT 14:08

विधा- त्रिवेणी
वज़्न- 122 122 122 122

स्वयं बुझके करती उजाला ये नारी
दे अमृत पिए विष का प्याला ये नारी!

वो सूखेगी इक दिन अगर जो है सरिता !!

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19 JUN 2021 AT 0:28

सच में मासूम मुहब्बत गर पाना है
तो किसी बेज़ुबान के पास जाओ
इंसानों से अगर पाने की चाहत है
तो ए दोस्त! मासूम से दिल बहलाओ।

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17 JUN 2021 AT 16:24

धरा पर मेहनत की मिसाल
बस एक किसान है...
चुका सकता नहीं उसके उपज
का मूल्य कोई, ऐ किसान
तुझे प्रणाम है।

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17 JUN 2021 AT 14:39

ऐ ज़िंदगी! तेरा मुझसे क्या वाबस्ता है
जिस ज़ानिब जाता हूँ तेरा ही वो रस्ता है।

तू सरपट दौड़ती और भागती झटपट क्यों
ज़िम्मेदारियों तले दबा मैं, चाल मेरी आहिस्ता है।

तेरे ख़ार भरे राहों पर भी हँस कर चलेगा 'अमित'
आज मान लिया ख़ुशियों का मौसम गुज़िश्ता है।

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17 JUN 2021 AT 14:01

मैं जब भी देखती हूँ दर्पण
तेरा ही अक्स नज़र आता है।
जब पूछती हूँ नाम अपना
दर्पण तेरा ही नाम बताता है।

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17 JUN 2021 AT 13:34

समझोगे कहाँ तुम चाँदनी रात में
सरगोशियाँ क्यों है,
न समझोगे कभी तुम ये बीच रात में
बेचैनियाँ क्यों है,
कितनी शिद्दत है मुहब्बत में कहाँ
समझोगे जानम तुम-
जो कभी टूटा होता तुम्हारा दिल भी
न पूछते कि तन्हाईयाँ क्यों है।

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17 JUN 2021 AT 13:22

1222 1222 1222 1222

चलाती हो कभी खंज़र, कभी शमशीर क्यूँ जाना
ख़ता मेरी अगर जो थी, चुनी तस्वीर क्यूँ जाना....!!

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15 JUN 2021 AT 15:25

विधा: त्रिवेणी
मापनी- 1222 1222 1222 1222
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फ़लक को छोड़कर देखो ज़मीं पर आ रही बारिश,
कि सबको बाँट कर ख़ुशियाँ बहुत हर्षा रही बारिश।

किसानों को मगर फाँसी पे क्यों लटका रही बारिश?

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13 JUN 2021 AT 14:14

2122 2122 212

ज़ख्म पाकर भी मैं तो ठहरा नहीं
घाव दिल पे खाया था गहरा नहीं...

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13 JUN 2021 AT 13:14


212 212 212 212
घर मुझे ढूँढता चार-सू इस तरह
अक्स अपना कोई खोजता जिस तरह //

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