मेरे चुप हो जाने पर और
मेरे रूठ जाने पर भी
कोई मुझे मनाने नहीं आता...
यह इस बात का सबूत है
के कोई भी मुझे अपने
तह-ए-दिल से नहीं चाहता....-
ना तो वो मेरी साँस आख़िरी थी
और नाही तो वो मेरी धड़कन आख़िरी थी
जो खोया था मैंने उसे, बस वो घड़ी ही आख़िरी थी-
कुछ इस तरह हो गई हैं हमें
के अब धड़कनें भी दिल छोड़ जाए
तो तन्हाई मेहसूस नहीं होगी
हाँ, अब यह महफिलें मगर
ज़रुर ही सताएँगी हमें अक्सर
लेकिन धीरे-धीरे इस शोर में भी
कोई आवाज मेहसूस नहीं होगी-
मेरे दर्पण में भी, अब मेरी छबी नहीं दिखती
मेरे अपनों को भी, अब मेरी कमी नहीं खलती
मेरा वज़ूद, परछाई भर का भी नहीं अब तो
और मेरे घर में अब मेरी, कोई तस्वीर भी नहीं मिलती-
ख़्वाब खूबसूरत,
हकीकत बन जाए
मेरी हसरतें छोटी-छोटी सी,
काश पूरी हो जाए
ख्वाहिशें तमाम मेरी,
हो जाए मुकम्मिल
जो दूर ये हमारी सारी,
दरमियाँ की दूरी हो जाए-
कोई अधमरा सा साज हूँ
कोई अधूरा सा गीत हूँ
जो लबों की दहलीज पर दम तोड़ गयी
मैं वही अधूरी प्रीत हूँ
कोई सूर ना मेरा छेड़े फिर
मैं नासूरों का गाँव हूँ
मेरी महफिलें सारी उजड़ी हुई
मैं बेसूरों का गीत हूँ-
क्यूँ ठहरा हैं वहाँ, जहाँ से गुज़रना चाहिए
और क्यूँ गुज़रा हैं, जहाँ पर ठहरना था
क्यूँ कुरेद कर रक्खें हैं, वो लम्हात दर्द भरे
और क्यूँ तड़पता हैं, पल खुशनुमा याद कर के
क्या चाहता हैं, क्या ख़्वाहिश हैं, आखिर रजा क्या हैं
क्यूँ जहन में जलाए रखता हैं गुज़रा वक़्त,
दिल को बार-बार बर्बाद कर के...-
वो पल मेरे सारे खुशनसीब थे
अमीरों के जैसे गुज़ारी थी ज़िन्दगी
हकीक़त में मगर हम गरीब थे-
यह तो सफ़र हैं, जो बेतहाशा ख़ूबसूरत हैं जनाब
कि मंज़िलों पर पहुँचने के बाद तो,
सब किस्सों में तब्दील हो जाता हैं...
पंख, पाँव, मन, शरीर सब कुछ थक जातें हैं,
जब आखिर में मंज़िल का, दर हासिल हो जाता हैं...-
दिल को भीगने से मिलता हैं
फिर ज़ख्मों पर सूखा मेरा खून
हज़ारों गुलाबों सा खिलता हैं-