Ambuj Srivastav   (अंबुज कुमार श्रीवास्तव)
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Fatehpur Uttar Pradesh (student)
Joined 16 April 2020


Fatehpur Uttar Pradesh (student)
Joined 16 April 2020
29 MAY 2022 AT 22:49

तुम रच रहे हो चांद तारे यकीनन सुन भी लो
फिर सितारे कही बादल से मिल के खो न जाए
दो घड़ी ये छाह में रुकना यकीनन सुन भी लो
फिर जीवन संघर्ष में यौवन तुम्हारा खो न जाए


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25 MAY 2022 AT 23:54

इतने खास नहीं हो तुम शायद, काश नहीं हो तुम
देखू जिनको इन आंखो से इतने खाश नहीं हो तुम
खुली हुई हैं दिल की आंखे जब से तुमको देखा हैं
मैं कितना भी दूर रहू तुमसे पर मुझसे दूर नहीं हो तुम

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20 MAY 2022 AT 20:56

नदिया, सागर सब है रोए
अरे बादल ने आंसू बरसाए
सारी वसुधा मन ही मन में
सोच के अब ये सो न पाए
ह्रदय था कैसा उर्मिला का
आंख न एक पल आंसू आए
नदिया________________
उस बिरहन की बिरह नहीं थी
अरे वो तो पति की प्रीत थी
उन आंख में आंसू कैसे आते
अरे जिनमें मिलन की प्यास थी
नदिया_________________
थे चौदह वर्ष नहीं पगली के
अरे नहीं थे वर्ष वो कल्पो के
एक घड़ी को सौ तोड़ो
फिर उसमे तोड़ो हज़ार
वो हज़ार मनवंतर गिन तू
या गिन तू पिया मिलन प्यास
नदिया_________________


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1 MAY 2022 AT 21:31

ऐ संग जीवन चलने वाले
दो घड़ी साथ जो चलते तुम
मेरे उपवन की डाली में
दो फूल जो बनकर खिलते तुम
मैं सह लेता ये तपन धूप की
जो बादल बनकर बरसते तुम

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26 APR 2022 AT 19:06

जालिम बहुत हैं यहां के फ़रिश्ते
खैरियत है की हम इंसानों से न मिलें
इंसानों से मिलते तो दिल लग जाता
किस्मत हमारी की हम फरिश्ते भी न बने

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26 APR 2022 AT 18:41

मुक्तसर सी जिंदगी हैं, एक फकत सी मेरी चाह हैं
एक मंदिर का आंगन हों, मेरे हाथ में तेरा हाथ हों
जन्मों के वादे ना हों, हम एक पल तो साथ हो
ज़माने का डर न हो ,एक फकत सी मेरी चाह हैं

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23 APR 2022 AT 23:46

मैं तुमको ये आवारा चांद सितारे न दे सका
मोहब्बत में झूठे वादों का सहारा न दे सका
संजो के रखें थे मैंने अपने आंख में वफ़ा के मोती
अफ़सोस तुम्हारी मोहब्बत की मैं क़ीमत न दे सका

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14 APR 2022 AT 23:01

मां हंस में विराजों, मां कमल में विराजों
मां बेटे की वाणी के तार में विराजों
मां शब्द में विराजों, मां अर्थ में विराजों
मां बेटे की भावना के भाव में विराजों

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11 APR 2022 AT 20:51

मैं भाव पक्ष का प्रेमी हूं गीता का ज्ञान नहीं मुझको
मैं तो मुरली की धुन हूं गीता का ज्ञान नहीं मुझको
मैं माखन खाने वाले उस कान्हा का पागल प्रेमी हूं
मैं परम ब्रम्ह को भी जानू ऐसा स्वीकार नहीं मुझको

मैं तो अश्रुओ सा पागल हूं उद्धव स्वीकार नहीं मुझको
मैं तो पनघट का चहल पहल हूं ध्यान नहीं स्वीकार ये मुझको
प्रतिदिन, प्रतिक्षण दर्शन हों ये अभिलाषा हैं मेरी
बस दो क्षण प्रगट तुम हो जाओ ये स्वीकार नहीं मुझको

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10 APR 2022 AT 21:10

उनकी कृपा को क्या कहें जिनकी जगत संतान हैं
हैं जगत के वो पिता राजा हमारे राम हैं
बैकुंठ वो जो त्याग आए कैसे न त्यागे वो अयोध्या
जन संत के हित जन्म लेते राजा हमारे राम हैं

वो प्रेम करते हैं तो ऐसा बाध देते हैं ये सागर
वो त्याग करते हैं तो ऐसा त्याग देते हैं सिंघासन
कण कण में बस कर वो जगत का कर रहे कल्याण हैं
शबरी के जूठे बेर खाते राजा हमारे राम हैं

उनकी कृपा से जग सृजन उनसे ही प्रलय काल हैं
संगीत के स्वर हैं वहीं, वहीं तो जग की लय ताल हैं
ख़ुद जाकर सुतीक्षण से मिले बाली का करते संघार हैं
जन जन के ह्रदय सम्राट हैं राजा हमारे राम हैं

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