ambuj bhardwaj   (Ambuj Bhardwaj)
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मैं नहीं, नहीं! मैं कहीं नहीं! - अज्ञेय
Joined 5 July 2019


मैं नहीं, नहीं! मैं कहीं नहीं! - अज्ञेय
Joined 5 July 2019
25 MAR 2023 AT 22:41

मोह में फँसा, ‘ठगनी माया’ के मारे,
विजेता का मन भीतरी द्वंद्व से हारे !

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8 MAR 2023 AT 22:03

तुम्हारे ‘प्रेम’ के रंग में, ज़रा मुझे तुम रंगो तो सही !
तुम्हारे हृदय में मेरी चाह, ये मुझसे कहो तो सही !!

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7 MAR 2023 AT 0:22

नीला, लाल, गुलाबी ; हर प्रकार का मेरे पास रंग हैं !
पर तुम्हारे घर का रास्ता, आज भीड़ से बेहद तंग हैं !
ग़र हो सके तो प्रिय, ‘प्रेम’ में ही भिगोना तुम स्वयं को !
‘घृणा’ का कलुषित भाव, करता भीतर का तेज भंग है !

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20 FEB 2023 AT 1:34

तुम्हारी आँखें माना बाज़ार, पर मेरे जैसे
कभी बोली लगाते नहीं दिखते ||
प्रेम समझने वाले सच्चे साथी, सरलता से
यहाँ सभी को नहीं मिलते |

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10 FEB 2023 AT 7:49

हे सूर्य, हे प्रकाश पुंज, हे तीव्र |
प्रदान कर ऊर्जा, हे आत्मदीप ||
तेरे तेज की भाँति, मैं प्रकाशित रहूँ |
शुभ्र रहे चरित्र, शुद्ध ही संचालित रहूँ ||
तेरा दिव्य ओज मेरे भीतर प्रवाहित हो |
परमार्थ का ये भाव मुझमें समाहित हो ||
हे प्रचंड, हे प्रकांड, हे प्रबल दीप |
मोती कर तू मुझे जिस भाँति सीप ||

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20 JAN 2023 AT 21:42

खोज स्वयं के भीतर का ‘ओज’,
छिपे हुए तमस का प्रतिकार कर !
ज्ञान, विज्ञान, परमार्थ का है भेद ;
भेद सके जो, वो दृष्टि प्राप्त कर !!

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2 JAN 2023 AT 23:49

मदिरा नहीं, तुम्हारे ये ‘नेत्र’ मुझे चकित करते हैं !
असत्य नहीं, मेरे कहे सत्य मुझे व्यथित करते हैं !

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24 DEC 2022 AT 0:09

कर्तव्यनिष्ठ, धर्मपरायण, नियमों पर अडिग ;
ग़र कुछ मसौदे यहाँ पर धूल फाँकते पड़े हैं !
तो अति व्यवहारिक, निजहितों के समर्थक ;
मेहनतकश मुर्दे भी, कई-सौ कब्रों में गड़े हैं !
निज-अस्तित्व को मिटाकर, जो बने हैं नींव ;
गुमनाम हैं किंतु अमर गाथा टिकाएँ खड़े हैं !
ग़र मन छोटा कर सिसक उठें ये नींव की ईंटें,
ध्वस्त कर देंगी ईमारतें, जिनपर आप खड़े हैं !

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21 DEC 2022 AT 0:22

Laugh, in front of everyone.
But, cry in front of only one.

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18 DEC 2022 AT 9:14

‘कीचड़’ में रहकर भी शुभ्र खिले !
ऐसा एकमात्र पुष्प ‘अंबुज’ मिले |

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