Ambresh Yadav   (गुमनाम आशिक़)
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Joined 25 May 2020


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25 JUN 2022 AT 6:02

तुम दस्तक दे रही तमाम रातों के बाद ,
देखा हसीन ख़्वाब मगर पल भर देखा ।।

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24 JUN 2022 AT 21:51

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24 JUN 2022 AT 21:36

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24 JUN 2022 AT 21:33

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31 MAR 2021 AT 16:52

पहचान रंग की आंख से ईहां तो रंग भगवान ,
मदिरा मांस चलि रहा क्या हिंदू क्या मुसलमान ।।

लोकतंत्र वह लोक जहां जनता की मलिकाए ।
ईहां रंग गद्दी दिलवाए रहा अऊ रंग सरकार गिराए ।।

मनुष्य मन के रंग का घर सोचिन लिए पोताए ।
जग घूमन आए भट्टी में अऊ करिखा लेई लेई जाए ।।

मनवा जईसन चाहि रहा दर्पण रहा दिखाए ,
चसमन खातिर पईस्वा झूठहिं फुंकि जाए ।।

रंगन पर क्यों लड़त हो अंधेर भए जो बिलाए ,
गुमनाम जगाओ चेतना जहिमा ब्रह्म समाए ।।

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31 MAR 2021 AT 16:50

इश्क़ था हम से और हम से बेवफ़ाई है ,
तुम हो और ये प्यार बे-जाई है ,

* बे-ज़ाई - हद से ज्यादा

ज़ी रहे हैं हम तेरी यादों की तन्हाई में ,
इस तरह की जिंदगी में जीना हरजाई है ।

आओ उड़ के देख लो खुले आसमान में ,
आख़िरी उड़ान केवल रूह उड़ पाई है ।

तीन साल इश्क़ छः वस्ल में होने है ,
हमसे पूछो कैसे इतनी शामें बिताई है ।

* वस्ल - मिलन

सबके पास माचिस "गुमनाम" दीप जलाने को ,
बस्ती में आग फ़िर किसने लगाई है ।

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31 MAR 2021 AT 16:49

दिल और दिमाग़ में इधर बवाल चल रहा ,
तुम बताओ की तुम्हारा क्या हाल चल रहा ,

सात जन्मों तक तुम्हारा साथ निभाएंगे ,
आज कल फ़ोन पर ये मिसाल चल रहा ।

तैश दिखा रहे है वो पाव भर मांस से ,
कौन जाने किसके ख़ून में ऊबाल चल रहा ।

छः साल वस्ल की रात को कह रही ,
तुम्हारे मन में क्या - क्या और ख़्याल चल रहा ।

कौन किसकी तरह दिखना चाह रहा ,
दिख रहा कि शेर-सा शग़ाल चल रहा ।

हर तरफ़ हाय हाय की पुकार आ रही ,
इस वबा में बस इंतकाल चल रहा ।।

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31 MAR 2021 AT 16:47

धरोहरों को अपने संजोया जा रहा ,
निबाहों को साथ ही क्यों डुबोया जा रहा ?

आंचल में आम कहां से आएगा ,
बीज जब बबूल का बोया जा रहा ।

लोग कह रहे थे की आग सिर्फ़ जलाती है ,
यहां तो उससे पाप को धोया जा रहा ।

हिज़्र की रात उसकी , सब जानते ,
फ़ुर्सत से बैठ कर जो रोया जा रहा ।

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31 MAR 2021 AT 16:44

प्रेम पारस भी ,
प्रेम वैदूर्य है ,
प्रेम एक किरण क्या ,
प्रेम पूर्ण सूर्य है ।

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31 MAR 2021 AT 16:43

प्रेम एक रोग क्या ,
प्रेम ही योग है ,
प्रेम में वियोग क्या ,
प्रेम ही संयोग है ।

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