जिसे तुम इश्क़ कहते हो वो इबादत है मेरी,
जालिम दुनिया की अदालत में आज शहादत है मेरी,
किसी की जान लेने का इल्ज़ाम है मुझपर,
इसी जुर्म के सिलसिले में अब कटघरे को आदत है मेरी,
सियासी दांव-पेंच तो खेले नहीं कभी,
पर जिसे मारा है मैंने वही हिफ़ाजत है मेरी,
वकील थे मेरे आंसू एक पहर पहले तक,
जब तलक नहीं कहा था वफाई ने की वो तो आदत है मेरी,
भूल जाने की उनको आखिर में सजा मिली मुझे,
यादें चीख उठीं कि वो तो इनायत थे मेरी...!!
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