Amateur Writer   (Purge)
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Joined 1 April 2018


Joined 1 April 2018
18 DEC 2022 AT 19:21

मोह की नदी में, अपेक्षाओं की नाव ना उतारा कर ऐ मांझी,
अक्सर ऐसी नाव को कोई किनारा नहीं मिलता!!

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30 NOV 2022 AT 9:09

किसी फ़क़ीर से इक रोज़ हमने इन लकीरों को पढ़वाया, कुछ था जो हमने अपने मुकद्दर में न पाया,
हम भी अपनी फ़रियाद ले हर रोज़ उसके दर जाने लगे,और उसकी इबादत में रोज़ इस सिर को झुकाने लगे,
अपने मुरीद की फरियाद के आगे इक दिन वो झुक ही गया, जो मुकद्दर में न था वो भी इक रोज़ हमे बस मिल ही गया,
फिर वो वक़्त आया उस खुदा के पास जाने का, आज इक दर्द था किसी को अपनी लकीरो का हिस्सा बनवाने का,
आपने मुरीद की आँखों मे आंसू देख उसने बड़े प्यार से पूछा, तुझे इल्म हुआ कि क्यूं नहीं था वो तेरी लकीरों हिस्सा !!!

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20 NOV 2022 AT 20:49

कभी-कभी लड़ते हैं हम तकदीरों से,
खुदा की बनाई इन लकीरों से,
एक ख्वाहिश होती हैं कि ये मंज़र बदल जाएं
और अपनी भी किस्मत सँवर जाएँ,
पूरी शिद्दत से कोशिश भी हम करतें हैं,
अपनी चाहत के लिए फिर लड़ते हैं,
पर कहाँ हर बार ये पत्थर पिघलता है,
और पाने-खोने का ये सफ़र बस यूहीं चलता है......!!!

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8 NOV 2022 AT 20:52

एक दौर था जब हम अंधेरों से घबराते थे, चेहरे पहचानने के लिए रोशनी चाहते थे,
एक ये दौर है, जब हम उजालों से घबराते हैं, कहीं इस रोशनी में चेहरों पर लगें लोगों के नकाब न दिख जाएं, इस सोच से सिहर जाते हैं!!

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20 OCT 2022 AT 22:21

पंछी आते हैं, दाना खाते हैं और उड़ जाते हैं,
आज के ज़माने में रिश्ते भी लोग ऐसे ही निभाते हैं!!

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19 OCT 2022 AT 7:26

ख्वाहिशो का महल बनाया, बुनियाद रेत की रखी,
महल का ढहना तो लाज़मी ही था, पर फिर भी जाने क्यों रूह में दर्द की लहर भी उठी!!!

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22 SEP 2022 AT 17:17

ख्वाहिशों की उम्र में एहसास-ए-फ़र्ज़ दिए जा रही है,
ए ज़िन्दगी अभी पंख तो मैंने ढंग से खोले भी नही हैं, फिर जाने क्यूँ तू इतनी बंदिशें दिए जा रही है!!

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15 SEP 2022 AT 19:10

खामोशियों में छिपे लाखों किस्से होते हैं,
जिन्हें समझने की समझ रखने वाले
शख्स बहुत कम होते हैं,
जो समझ ले इन्हें ऐसे हुनरमंद दिल
को बहुत अज़ीज़ होते हैं,
बाकी सब तो ज़िन्दगी में बस
युहीं शरीक होते हैं!!

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15 SEP 2022 AT 19:06

शायद दूसरी बारिश से ये ज़िन्दगी पहली सी न महके,
शायद कोयल की कुक पहली सी न चहके,
पर तू वक्त और हालात को बदलने का मौका तो दे ए मुसाफिर,
सूखने दे इस मिट्टी को, फिर महकेगी ये मिट्टी बिल्कुल पहली बारिश सी,
बस थोड़ा हौसला रख, तेरी कोशिश तू जारी तो रहने दे,
गणित का सवाल नही ये जिंदगी, यूँ न इसमे खुद को यूँ उलझा रहने दे,
अपने चेहरे की मुस्कान को तू बस युहीं खिलने दे!!!

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29 AUG 2022 AT 19:13

इक अरसा हो गया घर के लिए निकले हुए, मुद्दते बीत गयी उसी रास्ते पर चलते हुए, पर जाने क्यूँ वो मकां तो आया पर वो घर नही आया!!

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