किसी फ़क़ीर से इक रोज़ हमने इन लकीरों को पढ़वाया, कुछ था जो हमने अपने मुकद्दर में न पाया,
हम भी अपनी फ़रियाद ले हर रोज़ उसके दर जाने लगे,और उसकी इबादत में रोज़ इस सिर को झुकाने लगे,
अपने मुरीद की फरियाद के आगे इक दिन वो झुक ही गया, जो मुकद्दर में न था वो भी इक रोज़ हमे बस मिल ही गया,
फिर वो वक़्त आया उस खुदा के पास जाने का, आज इक दर्द था किसी को अपनी लकीरो का हिस्सा बनवाने का,
आपने मुरीद की आँखों मे आंसू देख उसने बड़े प्यार से पूछा, तुझे इल्म हुआ कि क्यूं नहीं था वो तेरी लकीरों हिस्सा !!!
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