Amarnath Mishra   (@m@®🍁)
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Joined 2 June 2017


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21 OCT 2024 AT 16:01

मेरे हृदय की सजल राह पर,
दो पल चलकर थकने वालों।
तनिक धुंध को अंत समझकर।
तत्क्षण मार्ग बदलने वालों।
मैंने तुम्हारे मरूथल को।
रिसते पैरों से सींचा है।
हाय तुम्हारे नए बगीचे, नई बहार
नए मुसाफिर, नई बयार
वो फूल मेरे पांव के शूल,
मेरे हृदय के टुकड़े, लहू की धार।
बिखरे हैं मिट्टी में उर्वर‌ धूल।
मुझको बंजर कहने वालों।
अमरनाथ 🍂

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1 MAR 2024 AT 23:01

चारागाहों को निकले मवेशी,
सांझ ढ़लने‌ तक लौट आए।
कभी -कभी अपनी भूल मानकर।
लौटकर आए बिछड़े प्रेमी।।
ठंड बीतने पर सैलानी पक्षी,
बर्फ के घोंसलों को लौट गए।
चार दिन की छुट्टियों में, परदेशी
गांव की मिट्टी चूम गए।
छिहत्तर सालों में एक बार ही,
पर, लौटकर आया धूमकेतु।
वो लड़के कभी नहीं लौटे,
जो पढ़ने या कमाने शहर निकले।
उम्मीदों के क्रमचय - संचय में,
हर रोज अवमूल्यित होते,‌
उनके लौटने की प्रायिकता
शून्य की शून्य ही‌ रही।
____अमरनाथ











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10 FEB 2024 AT 13:42

रहा खामोश तो उलझनें बढ़ी,
जो कुछ कहा तो मसअले हुए।

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19 JAN 2024 AT 14:11

'हासिल' सबसे बड़ी विडम्बना,
'अधूरा' सर्वश्रेष्ठ अंज़ाम,
प्रेम:एक प्रत्यय।।
______अमरनाथ✍️



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16 JAN 2024 AT 11:05

हे उन्मुक्त पंछी,
तुम प्रेम में बहेलिया मत बनना,
स्वतंत्रता ही तुम्हारा‌ आकर्षण है
न तुम्हारे सुंदर पंख न लंबी ग्रीवा,
तुम उसे ऐसा प्रेम न करना,
कि उसे कैद कर लेना चाहो
एक खूबसूरत पिंजरे में।।
किसी विजयचिह्न की तरह
उसे संजोकर रखना तुम्हारे
प्रेम की पराजय है।
तुम उसे उड़ने देना,
सात आसमानों तक भी,
हर उड़ान में तुम्हारा ही साथ?
समझो, एक अदृश्य पिंजरा है।
तुम प्रेम में कुछ नहीं दे सकते।
तुम उसकी उन्मुक्तता मत लेना।
यही होगा सर्वश्रेष्ठ प्रेम।
तुम खुद भी पिंजरों में न रहना,
अकेले उड़ जाना शून्य की ओर,
बहेलिया का सर्वोत्तम प्रेम भी,
एक आरामदायक कैद ही है।
हे उन्मुक्त पंछी!
तुम प्रेम में बहेलिया मत बनना।
एक बहेलिया कहता है....
____अमरनाथ✍️









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7 AUG 2023 AT 16:59

मैं खूब मिला,
कोई कमी न रही
उसे मेरी भी।।

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7 APR 2022 AT 8:02

टूट जाएं जो अगर शाखों से तेरे हम।
छांव में फिर कोई‌ मुसाफ़िर न ठहरेगा।

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27 NOV 2021 AT 16:29

जिंदगी एक अधूरी किताब है।
जिसे पढ़ने के लिए लिखना पड़ता है।
जोड़ने पड़ते हैं कई सारे पृष्ठ।
कितने ही पन्ने हटाने पड़ते हैं।
मिटानी पड़ती हैं कई अनचाही लिखावटें।
कई अनछुए पहलू दिखाने पड़ते हैं।
लिखते लिखते रूक जाना पड़ता है।
एक मुकम्मल अल्फाज़ की तलाश में,
शब्दों के क्षितिज तक जाना पड़ता है।
बिना आवरण की इस किताब में,
हर पृष्ठ आरंभ हर पृष्ठ अंत होता है।
कहीं से शुरू करना कहीं तक पढ़ जाना होता है।
पन्ने दर पन्ने भावनाओं के सफ़र में,
कभी हंसना, रोना कभी समझना होता है।
किसी के न‌ होने पर भी यह किताब जीती है।
और वक्त का झोंका इसके पन्ने पलटता है,
कि शायद कोई अजनबी कुछ शब्द दे जाए,
अनंत समय तक मुकाम को तरसती,
जिंदगी एक अधूरी किताब है....
©अमरनाथ🍁





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27 NOV 2021 AT 16:26

जिंदगी एक अधूरी किताब है।
जिसे पढ़ने के लिए लिखना पड़ता है।
जोड़ने पड़ते हैं कई सारे पृष्ठ।
कितने ही पन्ने हटाने पड़ते हैं।
मिटानी पड़ती हैं कई अनचाही लिखावटें।
कई अनछुए पहलू दिखाने पड़ते हैं।
लिखते लिखते रूक जाना पड़ता है।
एक मुकम्मल अल्फाज़ की तलाश में,
शब्दों के क्षितिज तक जाना पड़ता है।
बिना आवरण की इस किताब में,
हर पृष्ठ आरंभ हर पृष्ठ अंत होता है।
कहीं से शुरू करना कहीं तक पढ़ जाना होता है।
पन्ने दर पन्ने भावनाओं के सफ़र में,
कभी हंसना, रोना कभी समझना होता है।
किसी के न‌ होने पर भी यह किताब जीती है।
और वक्त का झोंका इसके पन्ने पलटता है,
कि शायद कोई अजनबी कुछ शब्द दे जाए,
अनंत समय तक मुकाम को तरसती,
जिंदगी एक अधूरी किताब है....
©अमरनाथ





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24 OCT 2021 AT 11:40

जैसे परिंदों का आसमान छिनता है।
या कोई नदी रेत में गुम जाती है।
जिस कदर पत्थरों का हृदय एक
बूंद को तरस जाता है।
या फिर जैसे पूरा का पूरा जंगल
आग की लपटों में खाक हो जाता है।
क्या इसी तरह होगा तुम्हारा जाना?
आंसुओं को भाप कर देती है,
जैसे विरह से जलती देह।
फूलों को छीन लेता है जैसे पतझड़ का द्वेष।
समंदरो को सुखा देता है जैसे सूरज का क्रोध।
क्या इसी तरह होगा तुम्हारा जाना?
नहीं!
रक्त नैराश्य से धमनियों में जम जाएगा।
श्वास के हर तार में मैं शिथिल होकर टूटूंगा।
मेरी कलाई की घड़ी ठहर जाएगी।
आंखों में जवां ख्वाब दफ्न होने लगेंगे।
एक एक करके मैं सबसे छूट जाऊंगा,
जैसे सांसों की कमी में छूटती है जिंदगी,
वैसा होगा तुम्हारा जाना।
@अमरनाथ_________________🍁
















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