मैं इश्क़ तुम्हारा यूँ भुला तो नहीं सकता,
धागे उलझे हैं जो वफ़ा के उन्हें सुलझा तो नहीं सकता,
मैं इश्क़ तुम्हारा यूँ भुला तो नहीं सकता।
महफूज़ रखूँगा तुम्हारी यादों को अपने ख्यालों में,
अपनी बाँहों में मैं अब तुम्हें सुला तो नहीं सकता,
मैं इश्क़ तुम्हारा यूँ भुला तो नहीं सकता।
छुपा लूँगा तुमसे जो गम मिलें हैं मुझे,
ये दिखा के मैं तुम्हें अब रुला तो नहीं सकता,
मैं इश्क़ तुम्हारा यूँ भुला तो नहीं सकता।
वास्ता तो नहीं मेरा उससे जो दीया जलाया था तुमने आँगन मे मेरे,
हर तरफ अँधेरा है अब मैं इसे बुझा तो नहीं सकता।
मैं इश्क़ तुम्हारा यूँ भुला तो नहीं सकता।
मैं इश्क़ तुम्हारा यूँ भुला तो नहीं सकता। — % &
-