कुछ यादों को लपेट चादर में,
कुछ ख्वाबों को सजा तकिए तले,
अनायास ही वो मुस्कान बन चली आई,
जैसे छू कर धूप, ओस की बूंदें इतराई।
_अमर-
तुमसे ज्यादा देखी है
तुम्हारे दर ने मेरे आंसु।
सुना है उन्होंने
मेरी खामोश चीखों को
जो तुम न सुन पाई।
तुम अन्दर सोती रही
मैं बाहर रोता रहा।
मुझे अफसोस है
तुम आज भी
मेरी मुस्कान के पीछे
छुपे दर्द को
पढ़ नहीं पाई।
_अमर-
कल की आंधी के बाद
हवाओं ने माफी मांग ली,
पर जमीन पर
बिखरे पत्तों ने कराहते हुए
माफ कर दिया
हवाओं को,
उस डाल को,
उस पेड़ को, और
अंततः
अपनी मौत को
स्वीकार कर लिया।
_अमर-
पूनम और मावस के बीच
ये चांद की लुका छिपी
मेरे मन का दर्पण ही तो है -
कैसे कह दूं की प्रेम है तुमसे
मेरे हिस्से मेरे असमंजस भी तो है -
तुम्हारा मेरा आलिंगन
जैसे सांसों का सांसों से उलझना
नहीं चाहती की इन्हें सुलझाऊ
पर परिवार का बंधन भी तो है -
मेरी आंखों की खामोशी पढ़ लो
ये भी मेरे मन का दर्पण ही तो है।
_अमर-
तुम घर आई, जूते उतारे और
कुर्सी पर बैठ
एक गहरी सांस लेते हुए कहा -
"आज बहुत काम था दफ्तर में, थक गई"
मैं, अंदर जाकर
दो कप चाय बना लाया
हमने धीरे - धीरे फिर
एक - दूजे की थकान को पिया
आदमी में इतनी औरत और
औरत में इतना आदमी बचा रहना चाहिए।
-
छाने दो,
पपीहा, कोयल को भी गुनगुनाने दो,
अंधेरा घना था कल पिछली रात,
मुर्दों की बस्ती में थोड़ी जान आने दो,
नई कोपलों का यह एक नया दौर है,
बंदिशों की हद से इन्हे आगे बढ़ जाने दो,
शाखों पर नए पत्तों को मुस्कुराने दो,
उम्मीद का सवेरा फिर से छाने दो।_अमर-