इतना गिर जाऊंगा सोचा नहीं था,
कुछ बातें ऐसे हीं नहीं तुम्हारी
रातों की नींद छीन लेती है ।-
करो उद्घोष युद्ध की,
तैयार हो जाओ मेरे शूरवीर ।
भुजाओं को मज़बूत बना ,
ललाट लगाकर भस्म की
फाड़ तो तुम, छाती दुश्मन की।
पूजो अपने अपने इष्ट को
प्राप्त करो सब शक्ति ,
उठाओ अब शस्त्र मेरे वीरों
ये शत्रु तुम्हें ललकार रही ।
खड्ग खप्पर लेकर निकलो
प्यास बुझाओ रक्त से ,
बूँद ना एक भी गिरने पाये
राक्षसों के वध से ।
काली दुर्गा की कर उपासना
लेकर शक्ति उनसे ,
उठो मेरे शेर तुम
राणा शिवाजी उठे थे जैसे ।
क्यूँ बैठे हो चुप तुम?
न्याय कहाँ अब सच होती है ,
खून ना खौले तुम सब का
ऐसा कृत्य नहीं कोई बांकी ।
करो उद्घोष युद्ध की ,
जय पराजय की चिंता छोड़ो
लड़ो तुम वैसे जैसे लडा भीम कभी,
फाड़ के ज़ान्घा से रक्त निकाल
धो डालों अपने मस्तक भी ।
उठो मेरे शेर उठो
करो तैयारी तुम अब युद्ध की ।-
बर्बादी के सफ़र की शुरुआत हो गयी,
खैर कौन सा तुम मुझे आबाद कर के गयी ।
नफ़रत अब हो गयी है सबसे जो कहते हैं सच,
झूठे लोग तो यहाँ कमाल कर गए ।-
मौत, क्यूँ नहीं आ जाते हो ,
आना तो है हिं तुम्हें ।
मुश्किलों के पहाड़ से
अब कूद जाऊंगा मैं ।
लिपट जाऊंगा तुमसे
अगर नहीं आये तुम
तो मैं आऊंगा मिलने तुमसे ।
मौत, क्यूँ नहीं आ जाते हो,
आना तो है हिं तुम्हें ।-
या तो छोड़ दे युद्ध भूमि,
या उठा खडग पड़ी ,
रक्त बह रही हो
भले भुजाओं से,
आत्मबल में ना हो कमी,
काट गर्दन दुश्मनों की,
स्नान कर तु उसके रक्त की ।
न डर अभी ना तू डरा कभी,
परीक्षे की घडी, योधाओ ने है लडी
या तो छोड़ दे युद्ध भूमि
या उठा खडग पड़ी।
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दूर कहीं पहाड़ की कंदराओं में,खामोश होकर आँखें बंद कर महसूस करना उन बहती ठंडी हवाओं को, उन बहती शीतल जल की आवजों को उन पक्षियों की चहचाहट को, देखना उन लोगों की आँखों में जिसमें शास्वत सच के साथ ईमानदारी और बड़े ,बूढ़े और बच्चों के प्रति तुम्हें सेवा भाव दिखाई देगा, अगर तुम इन सब को देख पाने में सक्षम हुए तो तुम नये तुम बनकर लौटगे पुराने विचारों का परित्याग कर नये उमंगों से भर कर लौटोगे, तो निकलो उस सफर पे जहाँ तुम और बस तुम हो ।
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त्रासदी जो भी है जीवन की,
संरचना है किसी के मन की ।?
आओ ना तुम भी बैठो
रुको थोड़ा और तो देखो
क्या व्यथा ,क्या मजबूरी
कहानी यही तो है हर
चौखट की ।
घबराओ नहीं अभी तो तुम छोटे हो
रो धो के सब भूल जाओगे,
बड़े होकर फिर
तुम सारे सवाल दोहराओगे
ये त्रासदी जो भी है जीवन की,
क्या ?सच में ये संरचना है किसी के मन की ।
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उसकी प्राथमिकताओं में
मेरा नाम नही रहा कभी
उसने चुना ही था मुझे
एक रोज़ आहुति के लिए !!
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