कौन कहता है,
हमारे दरमियां अब महज़ फ़ासले ही हैं,
तू उन रेल की पटरियों से पूछ,
जो दूर होकर भी अक्सर साथ ही तो चलते हैं ।
कौन कहता है,
तेरा स्पर्श अब महज़ ख़्वाब सा है,
तू उन सर्द हवाओं से पूछ,
जो अक्सर तेरी छुअन का एहसास ही तो दिलाते हैं ।
कौन कहता है,
तेरी मोहब्बत की चाहत नहीं मुझे,
तू इस दिल से पूछ,
जो आज भी तेरा हाथ थामने की इबादत लिए बैठा है।।
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