क्या लिखूँ अब उसके लिए! जिसे
एक पल भी मेरा ख्याल नहीं आया,
पहन कर अंगूठी किसी गैर कि
उसकी नजरों से शर्म का
एक कतरा तक नजर नहीं आया,
उसके होठों पर मुस्कराहट
उसकी मर्जी कि थी
शायद मेरी आँखों मे उसे
टुटा हुआ मैं नजर नहीं आया,
जा चुका था दूर, वो मेरी नजरो से
और मुझे इक्तला तक ना हुई
था वो पहले से ही किसी और कि बाहों में
और शायद ये मुझे नजर नहीं आया।
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