Aman Bishnoi   (अमन बिशनोई)
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Joined 6 July 2020


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26 AUG 2021 AT 22:55

हां ये दौलत,शोहरत तेरे किस काम की
जब दिल में तेरे इंसानियत दर-ब-दर है
तू उस फ़लक से क्या चाँद तारे तोड़ेगा
जब तेरे जहन में नाकामयाबी का डर है

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25 AUG 2021 AT 18:04

जब करनी थी हमसे दोस्ती तो वो हसीना हिंदुस्तान बन बैठी ।
अब जब हो गई है यह दोस्ती तो वो भी पाकिस्तान बन बैठी ।।
कमबख्त कहें तो कैसे कहें यह बेवफाई का किस्सा मेरे यारो ।
जो हो गया तालिबान का कब्जा तो अफगानिस्तान बन बैठी ।।

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24 AUG 2021 AT 20:39

मन के उपवन में प्रेम का सुमन खिलने दो
इन सरहदों को छोड़कर गले से मिलने दो
अब यूँ इस जात धर्म के चक्कर में पड़कर
तुम इंसानियत की ये बुनियाद न हिलने दो

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23 AUG 2021 AT 14:19

हम तो मोहब्बत यार कर भी नहीं सकते
किसी की मोहब्बत में मर भी नहीं सकते
इस मोहब्बत के दरिया में डूब तो जाते हैं
कोई मुझ पत्थर में उतर भी नहीं सकते

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31 MAY 2021 AT 13:28

मैं भी शून्य तू भी शून्य
शून्य ही जीवन का सार है
शून्य से ही है त्रिदेव बने
अरु शून्य ही ओंकार है
न कोई मित्र न कोई शत्रु
हमारा शत्रु हमारा ही अंहकार है
डरता क्या है ओरे प्यारे
जीवन का कोई लम्बा चौड़ा सिद्धान्त नहीं
बस जीवन तो मात्र एक विचार है

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26 MAY 2021 AT 9:25

बाग में नयन बगावत कर बैठे
दो हृदय कुलबुलाहट कर बैठे
वो मिलन तो था खामोश मगर
नादान दिल थे आहट कर बैठे

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20 MAY 2021 AT 8:41

तेरे आंचल की खुशबू से इतना लबरेज़ हूँ माँ
तेरे आंचल की खुशबू मेरे ज़िस्म से निकलती है
तूने अपने हाथों से जो रंग भरा है मेरी जिंदगी में
तेरे बिना यह मेरी जिंदगी बेरंग सी लगती है

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15 MAY 2021 AT 19:27

किसी न किसी युग मे ऐसा वर्ग जरूर
उतपन्न होता है जो पूरी व्यवस्था को जहरीला कर
देता है ।
और उस जहर को मिटाने के लिए,
अपने अंदर का परशुराम जगाना पड़ता...!!

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14 MAY 2021 AT 13:54

कहो तो तुम्हें
पूरा का पूरा लिख दूं
पन्ने-दर-पन्ने पर
शब्दों में पिरो पिरोकर
और करीने से सजाकर
जैसे श्रृंगार की कोई कविता हो
मोहब्बत की कोई ग़ज़ल हो
जैसे फिजाओं में बहती हवा
और महकती खुशबू बिखरती है
उसी प्रकार तुम्हें भी बिखेर दूँ
अपने दिल की डायरी के हर पन्ने पर
खुशबू की तरह

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12 MAY 2021 AT 15:38

अहीर छ्न्द

जय जय मरुधर देश । प्यारो है परिवेश ।।
सौर्य बना पहचान । मरुधर देश महान ।।
मरुस्थल रो प्रदेश । अठै रो अजब भेष ।।
राणा री पहचान । यो है तन मन जान ।।

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