गरीबो के बच्चे भी खाना खा सके त्योहारों में,
इसिलिये भगवान खुद बिक जाते है बाजारों में...."
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Poet
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Journalist (Zee Media)
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महबूब की यादें दिलाती है सिगरेट
महबूब की यादें भुलाती है सिगरेट
बेवफ़ा ना कह दे इसे भी कोई
खुद को पूरा जलाती है सिगरेट
खुद के बुझने से पहले पहल
तलब पूरा बुझाती है सिगरेट
क्या ज़ैन क्या 'मृत' इक कश में ही
दोस्ताना गहरा बनाती है सिगरेट-
वो मेरी गलतियों पर अब डाँटते नही
यह कहकर कि लड़का बड़ा हो गया है,
कोसता हूँ कि क्यों बड़ा हो गया हूँ...-
सत्ता की है मांग यही कि तुम अब लिखना बंद करो
भेड़चाल में चलना सीखो विपरीत चीखना बंद करो
मत लिखो कि महंगाई है बस अच्छे दिन की बात करो
जन लोकपाल छोड़ो तुम पीएम की मन कि बात करो
रिपोर्ट कार्ड क्यों देखते हो ये देखो कि उसने क्या क्या अब तक झेला है
देखो ये कि माँ करती थी चूल्हा चौका उसने बचपन में चाय तक बेचा है
लिखो ये कि विकास हुआ है
थोड़ा नही बहुत खास हुआ है
पिछले सत्तर सालों में क्या ख़ाक हुआ है
अरे जो हुआ बस मोदी जी के हाथ हुआ है
रोज़गार की बात नही मुद्रा योजना की तुम बात करो
पेट्रोल डीजल छोड़ो घर घर उज्वला की तुम बात करो
मत दिलाओ उनके वादे याद उन्हें देशद्रोही करार किए जाओगे
सरकार विरोध में जो लिखा तुमने तो हिन्दुविरोधी भी कहलाओगे
चलो छोड़ो जो होता है होने दो ज्यादा सोचना बंद करो
सत्ता की है मांग यही कि तुम अब लिखना बंद करो
भेड़चाल में चलना सीखो विपरीत चीखना बंद करो-
अभी भी घूमना बचा है आधा संसार,
उन्नीस में फिर एक बार मोदी सरकार-
माँ मुझे तुम्हारी याद नही आती,
बिल्कुल भी नहीं...
(कैप्शन पढ़े)-