वो जो नाम तुमने दिए थे मुझे
वो जिन नामों से तुम बुलाती थी मुझे
दरसल वो बस नाम नहीं थे
उनमें एक अलग मैं छुपा हुआ था
एक अलग व्यक्तित्व
वो व्यक्तित्व जो सिर्फ तुम्हारे लिए थे
जैसे ही तुम मुझे उन नामों से पुकारती
मैं उस व्यक्तित्व में आ जाता
उसमे आते ही कहीं दूर चले जाते वो मेरी चालाकियां
वो समझदार समझदारियां वो परिपक्वता
बस होती थी एक मासूमियत इस ज़माने से हटके
इक किरदार बेफिक्र तुम्हारी बाहों में
जिसमें कोई फरेब नहीं था
बस था तो तुमसे बेशुमार बेहिसाब इश्क़।
अब जब से तू गयी गयी है
वो नाम भी तेरे साथ चले गए
और चला गया वो मेरा व्यक्तित्व, वो किरदार
अब मेरे पास है मेरा वही नाम
घिसा पिटा सा ज़माने का दिया हुआ
अब बस वही किरदार के साथ
ढ़ो रहा हूं मैं खुदको और उन पुराने किरदार की यादों को।
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