तेरे लबों को छू, मुझ पर जो ठहर जायें, वो मुस्कुराहटें हैं झील सी आँखें, जिनमें उतर हम बहक जाएँ, वो शरारतें हैं ये बिंदी, ये लाली, खनकती चूड़ियाँ और तेरी साड़ी, हर रंग तुझमें निखरकर कहे...... वाह! क्या नजाकतें हैं
रोज़ से ज्यादा रोटियों में आज़ स्वाद आया है देखा तो लंचबॉक्स में उनका प्यार आया है कुछ नसीहतों संग चेहरे पे दिल वाला इमोटिकोन आया है और... और घर जल्दी आने का हुकुमत-ए-फरमान आया है
जिक्र तेरा करता हूँ जब मैं अपनी कलम से उस निर्जीव के भीतर भी जज्बात आ जाते हैं तुझे मुहब्बत लिखूँ या राज़ ही रहने दूँ तुझपे हक़ सिर्फ़ मेरा है, आड़े ऐसे हालात आ जाते हैं
सुना है झुमके बेहद पसंद है उन्हें और हमें झुमके से निहारता उनके गाल पर काला तिल हरकतें, अदायें, नज़ाकत, नखरे और क्या क्या समझाएं उन्हें जाने किस बात पर फिसल गया ये बेचारा दिल
सुनो ना वो जो हमारी पहली मुलाकात होगी ना बातें तो बहुत सी हैं करनी, कहीं से तो शुरुआत होगी ना भविष्य का किसको पता पर वर्तमान हमारा साथ होगा ना सोचूँ यही कि थाम लूँगा वो पल, खैर तेरे हाथों में मेरा हाथ होगा ना
तस्वीरों में पिछली होली के कुछ ग़ुलाल संजोए रखा है ज़ेहन में तेरे मासूम से ख़याल पिरोए रखा है हल्की सी सुबह में घुली थी तेरी ख़ुशबुएं उस रोज़ उसमें तेरे हाथों के स्पर्श से शर्म से लाल ये गाल किये रखा है
नजरों के पेच इस क़दर लड़ गये उनकी तो ख़बर नहीं, तोते हमारे उड़ गये सोचा था जमीं से आसमां तक हम ही हम हैं उनका जिक्र भर हुआ फिजाओं में और मांझे संग हम उखड़ गये
हिदायतें तो हैं, पर शिकायतें भी हैं सामने मुस्कुराहटें तो हैं, पर पीठ पीछे की फुसफुसाहटें भी हैं कहने को तो हैं अपने, बाकी अपनेपन की दिखावटें ही हैं हैं तो रिश्तेदार, पर रिश्ते निभाने की मात्र गुंजाइशें ही हैं