Aman Akshar  
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Joined 23 April 2017


Joined 23 April 2017
27 APR 2020 AT 18:32

मंत्रणा कोई भी न सफल हो सकी
प्रीत को तो समर में उतरना ही था
हारना प्रेम में सब अमर कर गया
जीत जाता प्रणय फिर तो मरना ही था

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27 APR 2020 AT 11:04

मौन बंसी मौन होकर क्या बताये
हर समर्पण सांस से हारा हुआ है
मैं अकेलेपन का वो उठता धुआं हूं
जो तुम्हारे दीप का मारा हुआ है

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26 APR 2020 AT 21:10

हम उपासक हैं नहीं हम देवता हैं
हमको ही अमृत पिलाया जायेगा
यह अजब दुनिया है इसमें जी गये तो
प्यार में मरना सिखाया जायेगा

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24 NOV 2017 AT 22:51

ये समय इक अनूठा उपन्यास है
जिसमें अपना भी होना अनायास है
प्यास का ये सफ़र है बड़ी दूर का
जबकि घर तो नदी के बहुत पास है

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24 NOV 2017 AT 0:24

सब जो कहते हैं सुनने की कोशिश में हूँ
अब मैं चुपचाप रहने की कोशिश में हूँ
सब कहा जा चुका कुछ न कहने को है
बस इसी दुःख को कहने की कोशिश में हूँ

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16 NOV 2017 AT 1:02

हम जो हो जाते रोती नमीं व्यर्थ थे
प्रार्थना में जो होती कमीं व्यर्थ थे
हम अकेले थे सो काम के भी रहे
तुमको पा जाते फिर तो हमीं व्यर्थ थे

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15 NOV 2017 AT 17:23

चंद्रमा

रात के सिर लगा घाव है चंद्रमा
घाव सहकर बढ़ा भाव है चंद्रमा
वो तुम्हारी कमीं से घिरा दुःख है जो
इक उसी दुःख का दोहराव है चंद्रमा

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14 NOV 2017 AT 23:46

प्रीत के एक प्रारूप का सूर्य है
मुझको लगता था कि धूप का सूर्य है
सारी दुनिया मेरे मन का अँधियार है
हर उजाला तेरे रूप का सूर्य है

अमन अक्षर

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14 NOV 2017 AT 17:41

तुम न थे मन के सारे मनन व्यर्थ थे
तुमको देखा नहीं था नयन व्यर्थ थे
तुम बिना ज़िन्दगी के सभी आकलन
थे महज़ आकलन आकलन व्यर्थ थे

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10 OCT 2017 AT 19:44

मन का कुछ भी नहीं सांस के योग हैं
ग़म हो या हो ख़ुशी दोनों ही रोग हैं
आप रोती हुई उम्र के साथ हम
ज़िन्दगी से निभाते हुए लोग हैं

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