काश के जिंदा रहते समझ पाते,
ये हुनर हम जल्द समझ जाते,
करीब बहुत से सेकते हैं,
चिता लोग सर्दियों में बहुत,
और बहुत दूर से,
गर्मियों में बहुत!-
यक़ीन इतना रखो,
खुद की कोशिशों पर अमन,
लकीर हाथों की फ़कीर किसी को,
दिखानी ना पड़े!-
दर्द से पूछेंगे एक दिन,
सवाल ये जरूर,
गुज़र कर दिल से कैसे,
आंखों से छलक जाता है!
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ਕਈ ਬੁਰਕੀਆਂ ਤੇਰੇ ਬਾਜੋਂ,
ਫਿੱਕੀਆਂ ਹਜੇ ਵੀ ਨੇ,
ਮਾਂ ਤੂੰ ਕਿੱਥੇ ਤੁਰ ਗਈ,
ਥੋੜਾ ਤੇਰੀਆਂ ਅਜੇ ਵੀ ਨੇ!
निवाले कई तेरे बिना,
फीके अब भी हैं,
मां तूं चली कहां गई,
ज़रूरत तेरी अब भी है!-
ਕਈ ਬੁਰਕੀਆਂ ਤੇਰੇ ਬਾਜੋਂ,
ਫਿੱਕੀਆਂ ਹਜੇ ਵੀ ਨੇ,
ਮਾਂ ਤੂੰ ਕਿੱਥੇ ਤੁਰ ਗਈ,
ਥੋੜਾ ਤੇਰੀਆਂ ਅਜੇ ਵੀ ਨੇ!
निवाले कई तेरे बिना,
फीके अब भी हैं,
मां तूं चली कहां गई,
ज़रूरत तेरी अब भी है!-
तन्हा किसी कोने में,
गाँव के आँगन में,
पीपल के एक पेड़ से,
पूछता हूँ जब भी,
हाले दिल उससे,
जवाब बस यही मिलता है,
जिन कंधों पर झूली थी,
कभी औलादें मेरी,
थाम चली थीं जो बचपन में,
उंगलियां मेरी,
बोझ सा हो गया हूँ,
बहुत बेगाना हो गया हूँ,
पिता पिता कहते नहीँ ,
थकते थे जो लब,
उन लबों के लिए,
अब तू कौन हो गया हूँ!-
जोर जबर थोड़ा मुझसे
तू और कर ए जिंदगी,
लड़खड़ाया हूं बेशक,
मगर हारा नहीं हूं!
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