Amaan Ansari   (ए Man)
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"Peeping through the hole of Negativity for Positivity."
Joined 6 December 2018


"Peeping through the hole of Negativity for Positivity."
Joined 6 December 2018
12 FEB 2022 AT 22:19

अफसुर्दगी-Sadness तुराब-Soil तसव्वुर-Imagination

एक अजीब सी अफसुर्दगी छाई है,
किसी की याद किसी को देखकर आयी है

घंटो से चीख रहे है खामोश अपने ही अंदर,
फिर वो बेचैनी भी सुकूँ लिखकर मिटाई है

उस हिजाब वाली से है मुरव्वत बेइंतेहा हमे,
पर हमने भी ये बात उसे अबतक ना बताई है

खुद की लकीरों से की है,मुस्तक़बिल की बातें,
बातें की वो जो ख़ालिक ने शिर्क बताई है

मैं अनापरस्त बसर,खनकती तुराब से बना,
मैने भी हर बार झूठी मोहोब्बते जताई है

अभी तक नही हुई है हासिल वो जिंदगी हमे
जिसकी तस्वीर तसव्वुर की आँखों ने सजाई है

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9 FEB 2022 AT 23:21

इज़्तिराब-बेचैनी,दकियानूसी-Stereotype,आब-पानी बातिल-गलत

उसे बोलने की हिम्मत देता,उसका हिजाब है
काफ़िरों पे बनकर बरसा अज़ाब है,

इतना दम था उसके अल्लाह हू अकबर में के
बातिलों में बैठा अबतक एक इज़्तिराब है

वो महज़ लिपटा हुआ एक कपड़े का टुकड़ा नही,
वो सब दकियानूसी सवालों का सीधा सा जबाब है

मर्ज़ी से सजाया है उसने इस कपड़े को अपने जिस्म पर
ये उसके जिस्म का दाना तो उसकी रूह का आब है

बेखौफ डटी रही वो उस झुंड में शैतानो के,
आवाज़ में दरिया सा बहाव,आँखों में दिखता इंकलाब है

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27 JAN 2022 AT 20:39

शुजाअत-Bravery

उस हसीन से बस बात होनी चाहिए,
चाहे,फिर जैसे भी शुरुवात होनी चाहिए

हममज़हब है हम,ये बात अच्छी है,
हमख्याल होने के लिए बात होनी चाहिए

वो खूबसूरत है बिना किसी,सजावट के
उसके नूर से चमके कमरा,ऐसी रात होनी चहिए

वो महसूस करे महफूज़ बाहों में अपनी,
बाजुओं में इतनी शुजाअत होनी चाहिए

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24 JAN 2022 AT 19:20

भला अब ये नाटक भी कब तक,
तू खुश है,शाम तक,मैं खुश कब तक

सामने आने पर है मुस्कुराना हमें,
तो अब ये आँसू छुपाने है कब तक

कुछ सवाल तुम्हारे,कुछ होंगे मेरे,
मन में सवाल ये चाय खत्म होगी कब तक

एक दर्द में है कैद मिलने तक तेरे,
देखे,ये दर्द भी चलता है भला कब तक

ज़िद भी होगी जाने की जल्दी तुम्हारी,
अब ज़िद के आगे तुम्हारी हम टिकेंगे कब तक

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24 JAN 2022 AT 9:20

चुंदरी पर तेरी बेहिसाब दाग लगें है
ऐसा लगता है,के कल रात लगें है

तुम बैठी भी हो मुँह छुपाये यहाँ
और जिस्म पर तुम्हारे कई हाथ लगे है

तुम आओ साथ मेरे,तुम्हे हकीम से मिलवाना है
झूठे हो जाएंगे,जो सारे इल्ज़ामात लगे है

तुम्हे बनाऊँगा रानी सल्तनत की अपनी,
थोड़ा सा सब्र,हम भी बस दिन रात लगे है

है मोहोब्बत तुमसे बेइंतेहा इस 'अमन' को
कहने में तुमसे ये,साल सात लगे है

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12 JAN 2022 AT 19:02

अदावत-दुश्मनी

ये,वो,ये हिचकिचाहट कैसी है?
तुम सादा अच्छी थी,ये बनावट कैसी है?

यूँ तो नही है ये हमारी रात पहली,
फिर ये सजावट कैसी है?

तुम तो मरती हो दिल जान से मुझपर,
फिर बीच अपने ये रुकावट कैसी है?

तुमने सबके सामने अपना कहा था मुझे,
तो अब ये अदावत कैसी है?

अब चलता भी नही,उसकी सोच में मैं
तो भला ये थकावट कैसी है?

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6 JAN 2022 AT 21:46

उरूज़-Peak,जबाज़-Reason

ये उरूज़,परवाज़ तेरे बाद आया है
समझ जिंदगी का जबाज़ तेरे बाद आया है

एक उम्र लगी है,तुझसे निकलने में,
और तू है,के उसके बाद आया है

तेरा दिल नही तोडूंगा,रख लूंगा तुझे,
तू जो सब अपना हारने के बाद आया है

एक दरिया की तह में था,दफन मैं
तूने निकला,चूमा,फिर सांस उसके बाद आया है

चलो ये जिंदगी कर देते है नाम उसके 'अमन'
वो नासूर देने वाला,बनके परीजाद आया है

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2 JAN 2022 AT 21:58

इक आग के जैसे हूँ मैं,
कुछ रंगीन ऐब मेरी रूह में

मेरी बला से मरे वो कमबख्त
जो छोड़ के बैठा है मुझे सुकूँ में

अभी तो जन्नत लगती है,बस एक ख्वाब
अच्छा होता के होते हम कश्ती-ए-नूह में

मेरे खुदा तू बस खींच मुझे अपनी तरफ
जो मैं भी,रहूँ हरदम सजदे और रुकू में

मैंने माँगा था उसे उस नमाज़ में 'अमन'
पर कमी ही रह गयी थी मेरे वुजू में

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22 DEC 2021 AT 21:57

बस एक जान है जो मेरी है
माजरतखवां है ये शख्श,जो हुई देरी है

हमारे शहर से बहुत दूर है शहर उसका
हम रहते दिल्ली,वो रहती अंधेरी है

मै बातों-बातों में जो सब कह रहा हूँ,
ध्यान से सुनो,ये दास्तान मेरी है

आज तक नही मिला,इस अमन को अमन,
जबसे उस शख्श ने नज़र फेरी है

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22 DEC 2021 AT 20:45

धीरे-धीरे पैर पसार रहा हूँ मैं,
कैसे-कैसे दिन गुज़ार रहा हूँ मैं

चादर से ज़्यादा पैर फैलाने की मुझे आदत है,
अब वो आदत भी सुधार रहा हूँ मैं

वो अरसे बाद आई है मिलने मुझसे,
अमन रुको,उसे निहार रहा हूँ मैं,

उस हसीन से छीना कल मुस्तक़बिल अपना
आज उसे सवार रहा हूँ मैं

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