अल्ताफ़ नूरी   (अल्ताफ़ नूरी🖋️)
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07/08

कैसा रोना है, याँ कौन तिरा अपना है
अपनी शफ़क़त भरी हाथों से जो पोछे आँसू
Joined 7 September 2018


07/08

कैसा रोना है, याँ कौन तिरा अपना है
अपनी शफ़क़त भरी हाथों से जो पोछे आँसू
Joined 7 September 2018

वो आँख ग़म में तिरे जो कि अश्कबार नहीं
वो आँख फिर किसी आँख में शुमार नहीं

मिली ख़बर ये मुझे मुद्दतों के बाद कि अब
मिरे वजूद पर ही मेरा इख़्तियार नहीं

हज़ार जान हो तुझपर तो मैं निसार करूँ
यही गिला है ख़ुदा से कि जाँ हज़ार नहीं

वो दिल ही क्या जो तिरे 'इश्क़ में तबाह न हो
नज़र वो क्या जो कलेजे के आरपार नहीं

लज़्ज़त ए जिस्म यहाँ इश्क़ की तर्जुमानी है
मिले न ये तो किसी को किसी से प्यार नहीं

तुझे रिझाऊं तुझे किस तरह से प्यार करूँ
क्या मिरे शे'र तिरे वास्ते दुलार नहीं

किसी उजाले का मोहताज तो नहीं 'नूरी'
किसी चराग़ का इतना बुलंद मे'यार नहीं

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हम इसी सोच में मुद्दत से पड़े हैं पगली
किसकी तमसील दें ज़ुल्फ़ों को आख़िर तेरी
होंठ की लाली तेरी भी अजब अंदाज़ में हैं
सोचते हैं ये कहीं जान न ले ले मेरी

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ऐसे जान ए बहार मत कीजे
दिल के टुकड़े हज़ार मत कीजे
मेरी उम्मीद आपसे है फ़क़त
इनको यूँ तार-तार मत कीजे

राह तकते हैं आपकी कब से
ऐसे तो दर-किनार मत कीजे
प्यार कीजे तो प्यार ही कीजे
प्यार बेगाना-वार मत कीजे

ज़हर मानिंद है बेदिली सुनिये
बुलंद इसका वक़ार मत कीजे
दुश्मनी जम के कीजिये लेकिन
पुश्त पीछे से वार मत कीजे

शाइरी एक अज़ीम दौलत है
ख़त्म इसका मे'यार मत कीजे
दौर ए बादा न क्यों चले आख़िर
दौर यूँ सोगवार मत कीजे

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जाने कैसे वो लोग होंगे जिन्हें,
रात देती हसीन ख़्वाब है रोज़
एक मुद्दत से वहशतों ने मिरी,
नींद रातों की छीन रक्खी है

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इस तरह अपनी तबियत है मेरी ये नज़रें
तुझे देखे न तो बेज़ार रहा करती है

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देखने मिलती कहाँ तुझ सी हैं सरापा ख़ुशबू
ख़ुशबू बातें, तिरी नज़रें, तिरे आ'ज़ा ख़ुशबू
जिस तरह बख़्शी है निकहत तू ने बुस्तानों को
बस उसी तौर तू मुझपर भी चढ़ा जा ख़ुशबू

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ख़ून ए दिल किस तरह हाथों में लगाया तू ने
गौहर ए अश्क से मलबूस सजाया तू ने
बा'द कुछ रोज़ के दुल्हन की जो तैयारी है
ये नाचारी नहीं तेरी फ़क़त मक्कारी है

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सुन, कि इक तिरे रूठ जाने से
ऊब जाता है दिल ज़माने से
कल की बातों का क्या गिला जानाँ
बात बढ़ती है और बढ़ाने से

क्या ये सच है कि बुर्द-बारी में
ज़ख़्म बढ़ते हैं और पुराने से
कुछ तो रखिये ख़याल इस दिल की
कुछ शरर इसमें हैं ज़माने से

हमने जाना है लुत्फ़ बढ़ता है
रूठने पर तुम्हे मनाने से
ये बताए कोई ये शाइरी
किस से आती है दिल लगाने से

अब तो दिल भी ये बैठा जाता है
क्या ख़ता हो गई दीवाने से
अब ये 'नूरी' अजल-रसीदा है
अब तो आ जा किसी बहाने से

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और फिर तन्हाइयों में तेरा तसव्वुर हमको
सर से पा तक कि ख़ुशबू में डुबो जाता है
दिल धड़क उठता है मुझे आते ही तेरा ख़याल
ज़हन भी गुम, तिरे सीम-अंदाम में हो जाता है

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16 DEC 2023 AT 13:15

कोई क़िस्सा कोई जज़्बात पुरानी लिखते
अब जो लिखते तो तिरी यार कहानी लिखते
ऐसा लिखते कि लहू आँखों में उतर आ जाते
दिल के छालों की हम अंदाज़ बयानी लिखते

ये भी लिखते कि तू किस तरह सताता था मुझे
पहलू - ए - ग़ैर में रहता था रुलाता था मुझे
मिरे अंदर का मिरा दर्द ही खाता था मुझे
औज पर तल्ख़ सा लहजा तिरा लाता था मुझे

काश कि हम भी तुझे जान दीवानी लिखते
दिल के पन्नों पे तिरी अपनी कहानी लिखते

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