आओ मिल कर दीप जलाएं
खुशियां बाटें गीत सुनाएं
दूर करें मन से अंधियारा
जग जीवन में लाएं उजियारा
चमकें बन कर नभ का तारा
कीर्तिमान के केत न लहराएं
आओ मिल कर दीप जलाएं
खुशियां बाटें गीत सुनाएं
धर्म जात से हो के परे सब
भूलके सारे शिकवे गिले सब
हंसते गाते आज मिले सब
भेद भाव पर तीर चलाएं
आओ मिल कर दीप जलाएं
खुशियां बाटें गीत सुनाएं
मस्ती में मौसम ने ली अंगड़ाई
सब के चेहरे पर मुस्कान है छाई
हिन्दू मुस्लिम हो या सिख ईसाई
हर नफरत को आज मिटाएं
आओ मिल कर दीप जलाएं
खुशियां बाटें गीत सुनाएं
कहीं पटाखे कहीं अनार जले
रौशन रौशन हैं घर दरवाज़े
अफसोस करें ना गरीब बेचारे
उनके आंगन में भी दीप जलाएं
आओ मिल कर दीप जलाएं
खुशियां बाटें गीत सुनाएं-
मख्लुक हूं एक खालिक का , वोह ज... read more
अश्कों का ये सारा समंदर , मेरा है
है साहिल की रेत परजो घर , मेरा है
आती जाती लहरों से क्या डरना
चाहे साहिल हो या समंदर , मेरा है
हुआ है रौशन सारा शहर आफताब से
है जिसका तारीक बाम ओ दर , मेरा है
मौसम ए बहार है हर दरख़्त है हरा भरा
ये जो सुखा हुआ है शजर , मेरा है
जानिब ए मंजिल निकला है एक काफिला
अकेला जो तय हो रहा है सफर , मेरा है
गुलाबी,हरे और लाल है तो चटखदार रंग
मगर सादा है जिसकी नजर , मेरा है
एक हुजूम सा है सड़कों पर , राशिद
मगर सुनसान है जिसका रहगुजर , मेरा है-
दिल टूट के रेजा - रेजा हो जाता है ।
जब ख्याल से तेरा चेहरा खो जाता है ।
एक अजीब ख्वाब बुने हैं मैने भी , खुदा !
आंखों से पहले ही ख्वाब मेरा सो जाता है ।
ऐसे क्यों मिलते हैं मुझसे मिलने वाले ?
माना की यकीं है जो आता है वो जाता है ।
दिन कितने ही सुहाने हों उसे ढल जाना है ।
बाद रात की तारीकी के सुबह हो जाता है ।-
बिन बात किए सो जाऊं और तू मुझको सदा ना दे ।
इतनी भी तड़प मुझको.... ऐ जान- ए -वफा ना दे ।।
तक्लीफ हो गर मुझसे मेरी जान मुझको सजा देना ।
मुझे... तुझसे जो जुदा कर दे कोई ऐसी सजा ना दे ।।
अंदाजा कर ही नहीं सकता जो शमा ए मुहब्बत की
तपिश है दिल में,डर है कोई तुझको ये बात बता ना दे ।।
मुझको खबर है मुहब्बतों का सैलाब मौजूद है तुझमें ।
परेशां हूं....किस्मत के शोलों में खुद को तू जला ना दे ।।
अश्कों की भी मेंह देखो ..... किस जोर की बरसी है ।
संभाल के जो रखा है ..... तेरी यादों को बहा ना दे ।।
खिलने को तो कलियां वक़्त से पहले ही खिल जाएं ।
तबस्सुम को दिखाकर होंठों से खामोशी वो हटा ना दे ।।
✍️ राशिद कहलगांवी-
आओ मिलकर पुनः बनाएं एक नया हिंदुस्तान
जहां रहें ना केवल हिन्दू और ना ही मुसलमान
अकीदत हो मंदिर से भी जुड़ी हो आस्था मस्जिद से
धर्म - जाति से हो कर परे जहां वास करे इंसान
ऐसी मिसालें कायम कर दो मोहब्बत की
हम मस्जिद में पाठ करें मंदिर से हो अजान
बैर खत्म कर आपस के एक बनें और नेक बनें
कर के नफरत की लड़ाई स्वतंत्रता का किया अपमान
आओ मिल कर प्रण करें , देश बचाएं देश बढ़ाएं
मुल्क की महब्बत सबसे अव्वल है हमारा यह ईमान
आओ मिल कर पुनः बनाएं एक नया हिंदुस्तान
जहां रहे ना केवल हिन्दू और ना ही मुसलमान
- राशिद कहलगांवी
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आओ मिलकर पुनः बनाएं एक नया हिंदुस्तान
जहां रहें ना केवल हिन्दू और ना ही मुसलमान
अकीदत हो मंदिर से भी जुड़ी हो आस्था मस्जिद से
धर्म - जाति से हो कर परे जहां वास करे इंसान
ऐसी मिसालें कायम कर दो मोहब्बत की
हम मस्जिद में पाठ करें मंदिर से हो अजान
बैर खत्म कर आपस के एक बनें और नेक बनें
कर के नफरत की लड़ाई स्वतंत्रता का किया अपमान
आओ मिल कर प्रण करें , देश बचाएं देश बढ़ाएं
मुल्क की महब्बत सबसे अव्वल है हमारा यह ईमान
आओ मिल कर पुनः बनाएं एक नया हिंदुस्तान
जहां रहे ना केवल हिन्दू और ना ही मुसलमान
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मैं खाईफ नहीं हरगिज़ लिखूं गर तुम्हारे ज़ुल्म का पर्चा ,
खौफ जिसका दिल में है वोह खुदा और है तू नहीं !!
میں خائف نہیں ہرگز لکھوں گر تمہارے ظلم کا پرچہ ،
خوف جسکا دل میں ہے وہ خدا اور ہے تو نہیں !!-
एहसास ए दोस्ती में हायील मजबूरियां नहीं होती ।
रिश्ते जुड़े हों गर दिल से तो दूरियां नहीं होती ।।-
ज़िन्दगी के हर मोड़ पे नए रास्तों को खुलते देखा है,
माल ओ ज़र के सामने मंजिल से लोगों को भटकते देखा है ।।
शहद रख कर ज़ुबां पर ज़हर की तिजारत करने वाले ,
ऐसे आस्तीन के सांपों को बारहां कुचलते देखा है ।।
जिन्हें है नाज़ अपनी चंद रोजा इंतेकामी बहारों पर ,
ऐसे मगरूरों को अक्सर सहरा ए जिल्लत में तड़पते देखा है ।।
बहुत ही मशहूर है कहावत उससे कुछ सीख ले राशिद,
गड्ढा जो खोदते हैं दूसरों के खातिर खुद उन्हें गिरते देखा है ।।-
کرتا ہے محبت بھی جس ذات کا اعتراف ،
करता है मुहब्बत भी जिस ज़ात का ए'तेराफ
اسے عرش پہ خدا اور فرش پہ ماں کہتے ہیں ۔
उसे अर्श पे खुदा और फर्श पे मां कहते हैं ।।
-راشد کہلگانوی-