मुझे तुम आज भी वैसे ही पसंद हो
वैसे ही गीत गुनगुनाते हुए
मौसमों के रंगों में खुद को तलाशते हुए
कभी सोचा था तुमने की तुम इतने बदल जाओगे इतने जितने लोगों की मिश्री से भरी बातें जो वक़्त आने पर कब करेले सी कडवी हो जाती है पता ही नहीं चलता
तुम्हारे साथ बंधी सारी आदतें चाहें अनचाहे
उन रास्तों पर ले ही जाती है जहाँ सिवाए हंसी के कुछ भी नहीं...
सब कहते है मैं चीजों को बहुत सहेज कर रखती हूँ,
पर मेरी गुल्लक में शिकायतों के सिक्के कब शामिल हो गए
कुछ ख्याल ही नहीं रहा
वैसे तो मैं बहुत ज्यादा नहीं सोचती पर कभी
कभी बीते अनुभव जैसे मुझे कील चुभा जाते हैं
फिर उन गंभीर रास्तों पर ले जाते हैं जहाँ से बमुश्किल यहाँ आ पायी हूँ,
पर मैं खुश हूँ आज भी बहुत ज्यादा बेवजह
बस इसलिए क्योंकि ये बेख्याली ही विरासत है तुम्हारी जिसने मुझे गुमनाम नहीं होने दिया और बस इसी की रोशनी से ही जगमगाता है वजूद मेरा ।
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