कविता
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अरे यार तुम कितने भोले हो
मैंने अपने एक लिखे हुए टुकड़े का शीर्षक कविता रख दिया
और तुम उसे लगे पढ़ने कविता समझ कर...?
तब तो ये भी सम्भव है कि मै कुछ भी गाने लगूंगा
और तुम उसको सुनने लगोगे गीत समझ कर
ये भी हो सकता है कि मै अपने किसी लिखे बकवास को
किताब की तरह छपवाऊं
उस पर एक स्टिकर लगा दूं कहानी, उपन्यास या फिर नाटक का
और तुम उसको पढ़ डालो पूरी दिलचस्पी के साथ...|
ऐसे क्यों हो तुम, ये कैसी प्यास है तुम्हारी
ये कैसा संघर्ष है तुम्हारा, क्या खोजना चाहते हो तुम
किसी और के लिखे अल्फाजों में...?
ऐसा क्या है इस दुनिया में या फिर तुम्हारे इर्द गिर्द
जिसको तुम खुद नहीं देख पाते
क्या सुन लेना चाहते हो तुम, जब कोई गाता है कुछ भी
क्या पाने की कोशिश करते हो तुम, घंटों जूझने के बाद किसी किताब से
या फिर कविताओं, कहानियों, उपन्यासों, नाटकों में?
जब तक तुम खुद न बोलो
ये कोई नहीं बता सकता कि ऐसे क्यूं हो तुम
क्या खोज रहे हो इतनी दिलचस्पी से...?
कही तुम खुद को ही तो नही तलाश रहे मेरे शब्दों में...?
अब बस भी करो, मान जाओ, रोक दो पढ़ना
ये कोई लविता नही है...|
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