अल्फ़ाज़ की आवाज़   (Shashank)
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Joined 3 December 2019


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हम सब के भीतर एक मुजरिम रहता है
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आपको कभी महसूस हुआ है
सोते, जागते, दौड़ते, भागते
कि हम सब के भीतर एक मुजरिम रहता है
हमारे ही द्वारा जलील किया हुआ ऐसा कोई
जिसको हम ने आजीवन कारावास की सजा सुना दी होती है
जिसका गुनाह सिर्फ इतना ही है कि वो हमें
वो सब कुछ करने के लिए कहता है
जो या तो वर्जित है या फिर हम वो करना नही चाहते
हमारे ही भीतर बैठ कर वो चिल्लाते रहता है
हमे छेड़ते रहता है, धमकाता है हमे, डरता भी है कभी कभी
कुरेदता है अंदर की दीवारों को, छटपटा कर मारता है टक्कर
दरका देता है चट्टान से भी मजबूत हमारे भीतर की दीवारों को
लेकिन वो अजीब है, भागने की कोशिश कभी नही करता
और ना हम उसको निकाल पाते हैं अपने भीतर से
मानो जैसे हम और वो अभिशप्त हैं
एक दूसरे के साथ एक दूसरे के भीतर
जीते रहने को
कभी कभी वो एक दम शांत बैठ जाता है
मानो जैसे हमसे रूठ गया हो
हम लगते हैं उसको खोजने
हाथ डाल कर हम लगते हैं टटोलने अपने भीतर के खालीपन को
अचानक से पकड़ लेता है वो हमारे हाथ
और हंसता है अजीब सी हंसी
कमबख्त हमे पता भी नही कि करना क्या है उसका
कैसे जीना है उसके साथ...

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जिस हिजाब पर
इस मुल्क के कई शायरों ने लिख डाली किताब
उस मुल्क में ये क्या हो रहा है जनाब...?

चाहते क्या हैं आप जीते कौन
आपके रिवाल्वर की गोली या आपके हाथ का गुलाब...?

थोड़ी देर मौन रह कर सोचिये इसका जवाब
नही तो लुट जाएगा हम सब का मुल्क-ए-आफताब— % &

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लता जी...

गीता, बुध, ताजमहल और गांधी के बाद
विश्व को भारत के तरफ से एक नायाब उपहार थीं
जिनकी आवाज़ ने कई पीढ़ियों को प्रेम करना सिखाया

उनको भरे दिल से अलविदा और विनम्र श्रद्धांजलि...— % &

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कुछ लोग
न निगाहों से बोलते हैं न जुबान से
वो सुनते भी नही हैं अपने कान से
शायद करते हैं वो प्यार बहुत अपनी जान से
इसीलिए रहते हैं वो शान से
उड़ते हैं वो बहुत ऊपर विमान से
और नीचे ताकते हैं वो अजीब से अभिमान से...— % &

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न ईश्वर है न धर्म है
न विधि का विधान
सबसे ऊपर सिर्फ संविधान है
चौकस है सावधान है
आन बान शान है
हर मुद्दे का यही समाधान है

Happy Republic Day— % &

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कविता का पंचनामा
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दिसंबर की एक सुबह
भारी कुहासा और हल्की बारिश के बीच
मैं निकला था बाहर
सड़क के उस पार वाली दुकान से
चाय के लिए दूध खरीदने
तभी मेरी निगाह पड़ी लोगो की भीड़ पर
जो बीच सड़क से घसीट कर
कुछ किनारे ले जाने की कोशिश कर रहे थे
पास गया तो देखा एक खून से लथपथ
मरी हुई कविता थी
लोगो से पूछने पर पता चला कि
कुछ दिनों से बहुत परेशान थी बेचारी
क्योंकि उसे कोई पढ़ नही रह था
निराश हो कर कूद गयी ट्रक के सामने
मर गयी बेचारी
मैंने बहुत ध्यान से देखा उसकी लाश को
अब उसको पढ़ पाना बहुत मुश्किल था
ऊपर से शीर्षक उखड़ कर उसके किसी पंक्ति में जा कर मिल गया था
कोई कॉमा और खड़ी पाई मुझे नही दिखी उसमे
छोटी सी कविता थी कुछ ही पंक्तियों की
दो मिनट भी नही लगता उसको पढ़ने में
लेकिन पता नही क्यों बेचारी को किसी ने भी नही पढा
किसी ने कहा वो बहुत छोटी थी शायद
इसी लिए उस पर किसी का ध्यान नही गया
बगल से गुजरते किसी सज्जन ने कहा
कि उसको लाल स्याही से लिखा गया था
डर के मारे उसने उसे नही पढ़ा...
(Read Caption)

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New Bill for the Amendment of Newton's Laws of Motion
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After sitting under this Wisdom Tree (in front of the NCERT Library) for an Hour, while discussing the New Education Policy, and noticing that no any Apple is falling, Modi and Shah have decided to amend "Newton's Laws of Motion".

Both of our honourable Leaders said that nothing has been done in the last 70 years to minimise the accidents on Roads that are happening because of these Laws. They also blamed Nehru and said that because of his close links to many left leaning scientists, he allowed Newton's Laws of Motion to operate in India and on Indians.

(Read caption)

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A God: Mahadev
A Teacher: Buddha
An Economist: Marx
A Leader: Gandhi

They will continue to shape
Our Behaviour and Our Society
Till Eternity


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शतरंज से पहले
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शतरंज से पहले
सिर्फ किंवदंतियां थी, वो भी ढेर सारी
योद्धाओं के सौर्य के बारे में
जो बुजुर्गों की कहानियों से होती हुई
आने वाली सारी पीढ़ियों को गढ़ती थी
और इस तरह जिंदा रहती थी इतिहास में
किसी बुजुर्ग की तरह...

शतरंज से पहले
कुछ गाथाएं थी धर्मग्रंथों में लिखी हुई
कुछ राजाओं के ईश्वर बनने की कहानियां
जिन्होंने बहुत इत्मिनान से आने वाले हर राजा को
ईश्वर बनने का नुस्खा दिया
और प्रजा को उन्हें ईश्वर मान लेने की नसीहत...

शतरंज से पहले
कुछ गीत थे, कुछ कविताएं थीं
जो प्रेरित करती थी सारी प्रजा को
किसी राजा के लिए, धर्म के नाम पर ईश्वर के लिए
राष्ट्रहित में खुद को कुर्बान कर देने के लिए...

फिर किसी ने इज़ाद की शतरंज
वो शतरंज जिसे देख कर प्यादों को पहली बार एहसास हुआ
खुद के प्यादा होने का...
(Read Caption)

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कविता
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अरे यार तुम कितने भोले हो
मैंने अपने एक लिखे हुए टुकड़े का शीर्षक कविता रख दिया
और तुम उसे लगे पढ़ने कविता समझ कर...?
तब तो ये भी सम्भव है कि मै कुछ भी गाने लगूंगा
और तुम उसको सुनने लगोगे गीत समझ कर
ये भी हो सकता है कि मै अपने किसी लिखे बकवास को
किताब की तरह छपवाऊं
उस पर एक स्टिकर लगा दूं कहानी, उपन्यास या फिर नाटक का
और तुम उसको पढ़ डालो पूरी दिलचस्पी के साथ...|
ऐसे क्यों हो तुम, ये कैसी प्यास है तुम्हारी
ये कैसा संघर्ष है तुम्हारा, क्या खोजना चाहते हो तुम
किसी और के लिखे अल्फाजों में...?
ऐसा क्या है इस दुनिया में या फिर तुम्हारे इर्द गिर्द
जिसको तुम खुद नहीं देख पाते
क्या सुन लेना चाहते हो तुम, जब कोई गाता है कुछ भी
क्या पाने की कोशिश करते हो तुम, घंटों जूझने के बाद किसी किताब से
या फिर कविताओं, कहानियों, उपन्यासों, नाटकों में?
जब तक तुम खुद न बोलो
ये कोई नहीं बता सकता कि ऐसे क्यूं हो तुम
क्या खोज रहे हो इतनी दिलचस्पी से...?

कही तुम खुद को ही तो नही तलाश रहे मेरे शब्दों में...?

अब बस भी करो, मान जाओ, रोक दो पढ़ना
ये कोई लविता नही है...|

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