“रिश्तों की रौशनी”
रिश्तों की चमक अब जैसे
धीरे-धीरे धूल में छिपने लगी है…
कभी जो नज़र से दिल तक जगमगाते थे,
अब बस ख़ामोशी में सुलगने लगे हैं।
इस दिवाली, एक दीपक ज़रूर जलाना —
उनके नाम का,
जो कभी अपने थे, पर अब फ़ासलों में खो गए हैं।
जला देना उस दीये की लौ
अहम और ग़लतफ़हमी की बाती से नहीं,
बल्कि मोहब्बत और माफ़ी के तेल से…
ताकि वो रौशनी
सिर्फ़ घर नहीं,
दिल के कोनों में भी उजाला कर दे।
और जब दीपक बुझ जाए,
उसकी गुनगुनाहट को सँभाल लेना
अपने ज़ेहन के किसी कोमल कोने में —
जहाँ से रौशनी कभी कम न हो।-
“जब मन उदास हो जाए”
कभी-कभी जीवन में, एक उदासी की लहर आ जाती है,
धीरे-धीरे, चुपके से, दिल के किसी कोने में बस जाती है।
कभी कारण होता है, कभी बस यूँ ही,
जैसे बादल बिना बारिश के आसमान ढँक लेते हैं कहीं।
वो भारी-सी लगती है छाती पर, साँसें भी बोझिल हो जाती हैं,
पर याद रखना —
उदासी दुश्मन नहीं होती हर बार, कभी-कभी वही हमें समझाती है प्यार।
वो दिखाती है वो दरारें, जिन्हें हमने अनदेखा किया,
वो जगहें, जिन्हें बस थोड़ी कोमलता की ज़रूरत थी।
जब सब कुछ टूटता-सा लगे, तो शायद वहीं सच्चाई मिलती है,
वहीं से एक नयी रोशनी धीरे-धीरे दिल में खिलती है।
उदासी एक संदेश है —
कि अब ठहरो, थोड़ा खुद से मिलो, थोड़ा सांस लो।
लड़ो मत उससे, उसे आने दो, बोलने दो,
उसकी बात सुनो —
वो बताएगी कौन-सा हिस्सा तुम्हारा अब भी मरहम माँगता है।
और जब वो कह ले अपनी बात, तो उसे विदा कर दो शांति से,
जैसे कोई मेहमान जो बस यह याद दिलाने आया था —
कि तुम इंसान हो, नाज़ुक हो, और फिर भी खोज में हो।
वो तुम नहीं है — वो बस गुज़रती है।
और जब वो चली जाती है, तब तुम अपने भीतर
एक और कोमल, पर मज़बूत रूप पाते हो —
जो दर्द को जानता है, पर उठना भी जानता है।
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🌸 जीवन की सच्चाई – खुश रहना सीखो 🌸
हर इंसान को खुशी चाहिए, क्योंकि ग़म तो हर किसी के हिस्से में है।
अगर तुम्हें किसी को अपने पास रखना है, तो सबसे अच्छा तरीका है — उसे आज़ाद कर दो।
ना कोई नियम, ना कोई बंधन, बस जब वो तुम्हारे पास आए…
तो मुस्कुराकर मिलो, उसे सुकून दो, ख़ुशी दो —
वो कहीं नहीं जाएगा, हमेशा तुम्हारे पास रहेगा।
प्रतिकार, ताने और कठोर उसूलों में ज़िंदगी एक जेल बन जाती है।
कानून तो न्यायालय के लिए हैं, पर जीवन जीने के लिए सिर्फ़ “प्रेम” चाहिए।
ऐसा प्रेम जो सही-ग़लत में ना बँटे, बस भावनाओं में बहता रहे,
जहाँ कोई निर्णय नहीं — बस अपनापन हो।
फिर देखो,
कैसे हर रिश्ता तुम्हारे इर्द-गिर्द मुस्कुराने लगेगा।
पर अगर तुम स्वयं दुखी रहोगे, और उम्मीद रखोगे कि कोई आए
तुम्हारा दुःख बाँटने — तो ये भूल है। क्योंकि आज के समय में हर कोई
कहीं न कहीं तुमसे ज़्यादा टूटा हुआ है।
अब वक्त रोने का नहीं, अब वक्त है साथ बैठकर मुस्कुराने का, ग़म भुलाने का,
हर रिश्ते में दोस्ती, सखी, स्नेह ढूँढने का।
ना कि आलोचना करने का, या कमी निकालने का।
जितना आनंद इस जीवन में ले सकते हो, ले लो…
क्योंकि कल तो सबको जाना ही है।
— Alpana ke Alfaaz ✍️
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“ज़िंदगी की रफ़्तार” — Alpana ke Alfaaz
ये तीव्र गति जीवन की,
अपने साथ बहुत कुछ बहा ले जाती है…
ख़्वाब, ख़्वाहिशें, मुस्कुराहटें,
यहाँ तक कि अपने ही कुछ हिस्से भी खो जाते हैं।
हम बस मूक दर्शक बन रह जाते हैं,
समय की धूल में लिपटी अपनी ही कहानियों को देखते हुए।
हर सुबह एक नई दौड़, हर शाम अधूरी थकान,
और बीच में कहीं — हम खो जाते हैं।
कभी लगता है जैसे जीवन किसी स्टेशन पर छूटा हुआ सामान है,
जिसे कोई लेने नहीं आता… बस वक़्त गुजरता जाता है।
हम सीख लेते हैं मुस्कुराना, पर भूल जाते हैं जीना।
हम सब कुछ पा लेते हैं — सिवाय सुकून के।
कभी-कभी ज़रूरी है रुकना,
साँस लेना, खुद से दो बातें करना,
याद करना कि हम कौन थे,
कहाँ जा रहे हैं… और क्यों?
क्योंकि असली जीवन वही है,
जो तेज़ी में नहीं,
बल्कि ठहराव के उन कुछ पलों में छिपा है,
जहाँ आत्मा शांत होती है — और मन सचमुच जीवित।
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“ख़ामोश ज़िंदगियाँ” — Alpana ke Alfaaz
अजीब दौर आ गया है, ऐ दोस्त,
हर चेहरा अब मुखौटों में मुस्कुराता है,
बातें तो बहुत हैं लबों पर,
पर हर रूह अंदर से चुप हो जाती है।
किसी ने तस्वीरों से नज़रें फेर लीं,
तो किसी ने आईनों से रिश्ता तोड़ लिया।
अब ना कोई ख्वाब बचा है आँखों में,
ना कोई जुनून जो दिल को छू गया हो।
ज़िंदगी चल तो रही है राहों पर,
पर जीने का हौसला कहीं खो गया है।
कोई इश्क़ करने से डरता है,
तो कोई मोहब्बत का नाम लेने से कतराता है।
दिल धड़कते हैं मगर एहसास नहीं,
हर धड़कन में अब बस ख़ामोश हलचलें हैं।
तन्हाई अब सुकून सी लगती है,
और भीड़ में भी सब अकेले चलते हैं।
वक़्त कुछ ऐसा आ गया है…
लोग अब मरते नहीं —
बस महसूस करना छोड़ चुके हैं। 🖤
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इस चाँद के भी कुछ अलग ही नख़रे होते हैं,
जब कोई ना देखे — तो शाम से ही चमकने लगता है।
और जब सबकी नज़रें उसे ढूँढती हैं आसमान में,
तो जैसे रुठ के बादलों में छिपने लगता है।
कभी तो इतना हसीन रूप लेता है,
कि बस देखते रह जाओ — कुछ कह ना पाओ।
ये चाँद भी अजीब है,
कभी महबूब-सा लगता है, कभी ख़ुदा-सा…
पर हर बार दिल चुरा ही ले जाता है।-
“वो जो चला गया…” — ✍️ Alpana ke Alfaaz
कभी किसी को इतना पास महसूस किया है,
कि उसके जाने का ख़याल भी नींद उड़ा ले जाए…
जिसके बिना साँस तो चलती है, पर रूह ठहर-सी जाती है,
हर सुबह अधूरी, हर शाम कुछ कह जाती है…
कभी डर लगा है, कहीं खो न दो उसे वक्त की धुंध में,
जिसके बिना ये ज़िंदगी तो चल जाएगी,
पर अधूरी रह जाएगी अपनी ही सुगंध में…
सोचती हूँ, जीवन के अंतिम पड़ाव पर कहीं ये अफ़सोस न रह जाए,
कि जो चला गया — अगर वो साथ होता,
तो शायद ये ज़िंदगी कुछ और ही रंग दिखा जाए…-
मैं अपनी ज़िंदगी खुद लिखती हूँ
— Alpana ke Alfaaz
मैं खुद अपनी ज़िंदगी की तक़दीर लिखती हूँ,
हर मोड़ पे अपने होने की तसवीर लिखती हूँ।
कभी टूटी, कभी बिखरी — पर फिर सँभली,
हर दर्द को मैं शेर बनाकर ताबीर लिखती हूँ।
तेरे जाने के बाद भी मैंने कलम नहीं रोकी,
मैं हर ख़ामोशी में नई इन्जील लिखती हूँ।
कभी आँसू स्याही बने, कभी मुस्कान साज़,
मैं हर एहसास को दिल की ज़ुबान से तसवीर लिखती हूँ।
लोग कहते हैं — “क्यों इतनी जागती हो रातों में?”
कह दूँ — मैं नींद नहीं, अपने ख़्वाब छीलती हूँ।
हर पन्ने पर कुछ सच, कुछ जज़्बात बुनती हूँ,
मैं टूटकर भी अपना मंज़र नई तदबीर लिखती हूँ।
जब आसमान ग़ुस्से में होता है, बिजली कड़कती है,
मैं अपने शब्दों से रोशनी की ताबीर लिखती हूँ।
कभी कोई मुझसे पूछे — “कौन हो तुम?”
तो बस मुस्कुराकर कह दूँ —
“मैं वो हूँ… जो हर दर्द को भी शायरी में तासीर लिखती हूँ।-
🌙 “ज़िंदगी के तीन हिस्से” — Alpana ke Alfaaz 🌙
ज़िंदगी तीन हिस्सों में बँटी रहती है…
ज़रूरतें — जो लाज़मी हैं,
ज़िम्मेदारियाँ — जो टाली नहीं जा सकतीं,
और ख़्वाहिशें — जो हमेशा अधूरी रह जाती हैं…
फिर भी,
हम हर सवेरा उठते हैं,
चेहरे पर मुस्कान लाते हैं,
दर्द को चाय की प्याली में घोल देते हैं… ☕
क्योंकि ज़िंदगी का असल फ़लसफ़ा यही है —
जीना, मुस्कुराना, और रब की हर लिखी कहानी को कबूल कर जाना… ✍️-
🌷 “ख़ूबसूरती” — Alpana ke Alfaaz 🌷
सौंदर्य वो नहीं जो आँखों को भा जाए,
वो तो पलभर की चाह है…
असली ख़ूबसूरती तो वो है,
जो रूह को ठहरा दे,
मन की हलचल को शांति में बदल दे।
जब भीतर की उलझनें ख़ामोश हो जाएँ,
और आत्मा मुस्कुरा उठे —
वहीं से सौंदर्य जन्म लेता है।
ख़ूबसूरती किसी मुखौटे में नहीं,
किसी साज-सज्जा में नहीं —
वो तो उसी आत्मस्वीकृति से जन्म लेती है,
जहाँ कोई दिखावा नहीं,
बस एक सच्चाई है…
बस “तुम हो” — जैसे भी हो, वैसे ही ख़ूबसूरत हो। 🌼-