Aloknath Pradhan   (Alok)
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Joined 20 May 2020


Joined 20 May 2020
6 HOURS AGO

--:: इंसान और पैसा ::--

पैसा कमाना अक्सर आसान होता है,
पर इंसान कमाना बहुत मुश्किल !
अफसोस यह है कि लोग पैसे कमाने के चक्कर में
एक अच्छे ओर सच्चे इंसान को भुल जाते हैं।
इतना एहमियत देते हैं पैसे को ...
की इंसान हो कर इंसानियत भुल जाते हैं।😞

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6 HOURS AGO

ज्यादा कुछ नहीं बस साथ खड़े होना काफी होता है।
क्यों कि परिवार बहुत जरूरी होता है।
जब आप पे कोई मुसीबत आती है..!
तब आपके भाई,वहन या आपके माता पिता ही आपके साथ खड़े हुए मिलेंगे कोई ओर नहीं।

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9 HOURS AGO

***नजरिए***

सुंदरता देखने वाले के नजरिए में होती है।
क्यों कि ...
किसी को कीचड़ में खिलें कमल मोहता है,
तो किसी को चांद में भी दाग नज़र आता है।

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YESTERDAY AT 14:27

बस कहने में...
की उम्मीद को कायम रखो।
उन्हें यह कौन बताए कि..
आंसू के बुंद पहले आंख से निकल कर आंखों के किनारे तक आता है, बस वह गिरने ही वाला होता है..!
हम जैसे तैसे करके उसे गिरने से बचा लेते हैं !!
और मेरे लिए उम्मीद उस आंसू के बुंद की तरह हैं,
जिसे थामे रखना बहुत कठीन है।

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YESTERDAY AT 14:04

जिंदगी और मौत की बातचीत...

मौत :- "जिंदगी..! हर कोई तुमसे प्यार करता है,
लेकिन मुझसे नफरत करता है ।"
एसा क्यों?
जिंदगी :- क्योंकि मैं एक खूबसूरत झूठ हूँ,
और तुम दर्दनाक सच !!

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1 MAY AT 13:21

यह दो ही सबसे महत्वपूर्ण चाबी है कुछ बनने का या फिर कुछ कर दिखाने का। क्यों कि ...
कुछ करने के लिए पहले लक्ष्य की जरूरत होती है।
जैसे सफ़र शुरु करने से पहले मंजिल का पता होना जरूरी है।
वैसे ही अगर कहीं पर गिर पड़ो तो
फिर से खड़े होने के लिए साहस का जरूरत होती है।
जैसे कोई पथरीली पहाड़ पर किसी बीज का अंकुरित होना या तुफान में गिरा हुआ पेड़ फिर से खड़ा होना।

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1 MAY AT 12:38

अगर दिल से करें तो,
नहीं तो हजार पूजा भी विफल हो जाती हैं,
अगर उसमें भाव का कमी हो तो।

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30 APR AT 14:01

मुश्किलें तो बहुत हैं।
पर मुश्किलों से लड़कर ही दौड़ना सिखना हैं।
ये चाहे कितनी भी कोशिश कर ले गिराने की ,
पर फिर भी बिना रुके आगे बढ़ना है।
पर ये अतीत रूपक ग़म का क्या करें.... ?
क्यों कि चाहे सारी ताकत लगा लें
इस ग़म को छुपाने में,
फिर भी यह कमबख़्त आंखे है !
जो सब बातें बयां कर देती है।

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29 APR AT 14:32

हम चाहे जितना कोशिश करें सुलझाने की
वह हर मोड़ पर कुछ नया रंग दिखाती है।
जैसे सुलझाने के बजाए और उलझ रही है।
क्या इसका मतलब यह है कि हम पहेली को बिना समझे ही किसी और के दिए गए रस्ते को अपने पहेली सुलझाने के लिए अपनाएं हैं ?

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28 APR AT 7:43

ନା ମୁଁ ଲେଖକ, ନା ମୁଁ କବି
କେବଳ ଶବ୍ଦରେ ଆଙ୍କେ ଲୋକଙ୍କ ମନର ପ୍ରତିଛବି।
ସେ ପ୍ରତିଛବି ଥାଏ ସତ୍ୟର ସୂର୍ଯ୍ୟ ପରି,
କିନ୍ତୁ କାହା ପାଇଁ ତାହା ପଙ୍କ, ପୁଣି କାହା ପାଇଁ ପଙ୍କଜ ପରି।

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