Alok Singh   (अलोक सिंह)
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मैं आग बन रहा हूं मुझे बुझाने मत आना
आना तो अग्निकुण्ड का तेज लेकर आना
Joined 28 September 2017


मैं आग बन रहा हूं मुझे बुझाने मत आना
आना तो अग्निकुण्ड का तेज लेकर आना
Joined 28 September 2017
18 MAY 2021 AT 14:19

जो पत्थर कठोर नहीं बन पाये
वो बह चले नदी के प्रभाव में समय के साथ साथ।

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17 APR 2021 AT 13:27



तुम्हारे साथ रह कर ये जाना कि
मुझे तुम्हारी दूरियां नहीं बल्कि ये नजदीकियां मारेंगी



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12 APR 2021 AT 20:59

If you cannot be the stars to my moon, watch me shining from the ground because I'm the moon.

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26 MAR 2021 AT 17:14



कोई नहीं जानता मुझे, मुझसे बेहतर
मैंने मेरे शोर को मौन में बदलते देखा है

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25 MAR 2021 AT 10:52

देह पर लगाए गए ज़ख्म भर जाते हैं
स्मृतियों के ज़ख्म पूरा जीवन मांगते हैं

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20 FEB 2021 AT 13:58

स्त्रियों का लड़ता गौरव, गवाह है हमारे पिछड़ेपन का

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17 FEB 2021 AT 23:17

बसंत के उगते फूल हमेशा याद दिलाएंगे
इन्हीं दिनों कभी, हम पर भी बहार आयी थी

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16 FEB 2021 AT 22:46

ये किस अना में हूं मैं
ये कौन सा वहम मेरे सर चड़ गया है

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29 JAN 2021 AT 10:58

कितने ही शब्द है
जो हम कहना चाहते हैं
पर कह नहीं पाते
हम चुनते हैं उन शब्दों का मर जाना
क्यूंकि हम जानते हैं
कि ये शब्द उठा सकते हैं क्रांति
और टूट सकती है परंपराएं
हम चुनते हैं मौन रह जाना
ताकि परंपराओं की धुरी पर
हमारे सपने खामोशी से मर सके

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18 DEC 2020 AT 14:27

एक बाप जिंदगी भर कमाता हैं
अपने सपने छोड़ कर बेटी के दहेज के लिए बचाता हैं
कैसे होते है वो लोग जो दहेज मांग लेते हैं
ना मिले तो बेटी पसंद नहीं कह कर टाल देते हैं।

इससे अच्छा है कि ब्याह ना कराया जाए
समाज के डर से उनका व्यापार ना कराया जाए
आंखें खोलो कि अब
दहेज के लिए बेटियों को ना जलाया जाए

है पौरूष तो करो अर्जित खुद तुम भी
क्यूं शादी के नाम पर दहेज मांग लेते हो
ख़ुद के लिए दूसरे के जीवन का
संघर्ष मांग लेते हो।।

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