हां इश्क है तुमसे अब मान भी लो,
हाल-ए-दिल मेरे दिल का अब जान भी लो,
नहीं होता सब बयां लफ़्ज़ों से सनम
कुछ आंखों को पढ़ो इशारों को पहचान भी लो।
दूर कितना भी हो चलना तेरे साथ है,
हमसफ़र तू हो सफर में तो फिर क्या बात है,
दो कदमों की दूरियां तुम फान भी लो,
आओ करीब ज़रा हाथों को थाम भी लो।
हां इश्क है तुमसे अब मान भी लो.......-
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Haan Ishq hai tumse ab maan bhi lo,
Haal-e-Dil mere dil ka ab jaan bhi lo,
Nhi hota sb bayaan lafzon se Sanam,
Kuch aakhon ko pdho,
isharo ko pehchan bhi lo.
Dur kitna bhi ho chlna tere sath hai,
Humsafar tu ho safar me to fr kya bat hai,
Do kdmo ki duriyan tum faan bhi lo,
Aao qarib zara hathon ko tham bhi lo,
Haan Ishq hai tumse ab maan bhi lo....-
टूटे सपनों को समेटकर कोई जोड़ सकता है क्या?
कोई अपनी ही धड़कनों से ख़फा हो सकता है क्या?
तुम्हारी चाहत को ही ना चाहें, तुम्हारे चाहने वाले,
बोलो इससे भी बुरा कुछ हो सकता है क्या?
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तुम्हें जो सोचना सोचो, तुम्हें जो मानना मानों
मैं किस हाल में हूं वो बस मेरा हाल जानता है-
हां जरूरी है कि रिश्ता हो,
जरूरी ये नहीं कि उसका नाम हो।
जरूरी ये नहीं कि जैसा वो सबके साथ है
वैसा ही तुम्हारे साथ हो,
जरूरी ये है कि....।।
वो जैसा है वैसा ही तुम्हारे साथ हो।
जरूरी ये नहीं कि दुनिया भर में
तुम्हारा नाम जपता फिरे,
जरूरी ये है कि....।।
तुम्हारा नाम ही उसकी दुनिया हो।-
अब ना वो रातें होती हैं,
ना वो बातें होती हैं।
होता तो नहीं अब,
मिलना जुलना उनसे।
लेकिन ख्वाबो में अक्सर
मुलाकातें होती है।।-
सुबह बांट दो सब में,
मुझे बस रात रखने दो।
सूरज को होने दो सबका,
मुझे बस चांद रखने दो।
अधूरे छोड़ दो सब ख्वाब,
बस एक अरमान रखने दो।
मेरे दिल की ज़मीं को, तुम्हारे
इश्क का आसमान रखने दो।।-
वक्त शुक्रिया तेरा,
मुझे इतना सिखाने के लिए।
वक्त - वक्त पे मुझे अपनों का,
असली चेहरा दिखाने के लिए।
ज़माना कितना अच्छा है,
हर रिश्ता कितना सच्चा है।
गलतफहमी की इस नींद से,
मुझे झकझोर कर उठाने के लिए।
वक्त शुक्रिया तेरा,
मुझे इतना सिखाने के लिए।।-
अदा कर "आज" अपना, मैंने उसका कल मंगाया है।
लुटा कर अपनी दुनिया, मैंने उसे दुनिया बनाया है।।
उसके प्यार के सागर किनारे बैठ कर मैंने,
वादों की रेत से अपना घर बनाया है।।
कुछ इस तरह.......
"मैंने इश्क़ कमाया है"-
बदमाश कितनी कलम है मेरी,
रूठती हो तुम तो, ये नाराज़ मुझसे हो जाती है।
छीन लेती है मेरे लिखने का हुनर,
मेरे शब्दों को मेरे खिलाफ, फुसलाती है।
लिखना चाहूं अगर कागज़ों पर मैं कुछ,
कमबख्त उनसे भी शिकायतें मेरी बतलाती है।
बदमाश कितनी कलम है मेरी.......-