यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत I
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्य... read more
आगे आने वाला शहर
कितना भी पसंदीदा क्यूँ न हो
पीछे छूटने वाला घर
बेचैन कर ही देता है ।-
तेरा चुप रहना मेरे जेहन में क्या बैठ गया ।
कितनी आवाजें तुझे दी कि गला बैठ गया ।
यूँ ही नहीं कि फ़कत मैं ही उसे चाहता हूँ ।
जो भी उस पेड़ की छांव में गया बैठ गया ।
उसकी मर्जी वो जिसे पास बिठा ले अपने ।
इसपे क्या लड़ना फला मेरी जगह बैठ गया।-
चाहे सोने के फ्रेम में जड़ दो,
आईना झूठ बोलता ही नही।।
सच घटे या बढे तो सच ना रहे,
झूँठ की कोई इन्तहा ही नही।।
धन के हाँथो में बिक गए हैं सभी,
जुर्म की कोई सजा ही नहीं।।-
ज़िन्दगी से बड़ी सजा ही नहीं।
और क्या जुर्म है पता ही नहीं।।
इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं।
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नही।।-
टूटे हुए तारे, बिखरे हुए मोती, उजड़े हुए सपने, सहमी हुए साँसें, देखने को तो बहुत कुछ देखा है मैंने, मगर मेरे बर्बादी का तूफ़ान भी कहता होगा अपने साहिल से, बारिश में एक जलती हुए लौ आज देखी है मैंने!!
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'आँसू' वो 'खामोश' प्रार्थना है..
जो सिर्फ़ भगवान ही 'सुन' सकता है..-
लोग कहते हैं किसी के चले जाने से ज़िन्दगी अधूरी नहीं होती..
लेकिन लाखों के मिल जाने से भी तो उस एक की कमी पूरी नहीं होती..-
बनाने वाले तेरी कारीगरी भी अब पहले सी न रही..
तू हर शख्स को इंसान क्यों नहीं बनाता..-