Alok Parashar   (आलोक पराशर)
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Joined 30 November 2017


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18 HOURS AGO

किस्मत की बेड़ियाँ पहन कर
मुझे चलना आता है,
न मैं अच्छा हूँ
और न औरों की तरह
मुझे अच्छा बनना आता है,
अब बस चुपचाप
अपने हाथों की लकीरें से
लड़ना आता है ।

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3 APR AT 0:19

कमरे में मैं था
और मेरी तन्हाई थी,
दोनों चुप चाप थे बैठे
दोनों में हुई जो लड़ाई थी...

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20 MAR AT 23:57

भले के लिए भला और बुरे के लिए बुरा हूँ मैं,
किसी के लिए वफ़ा, तो किसी के लिए दगा हूँ मैं,
ख़ामोशी, कलम और बंद कमरे का सगा हूँ मैं,
मैं एक ही आलोक हूँ, पर अलग अलग साँचें में ढला हूँ मैं।

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25 FEB AT 23:22

अमृता और साहिर के मोहब्बत को
अगर आयाम मिल जाता है,
तो साहिर को अमृता मिल जाती
और अमृता को साहिर,

पर कितनी गजलें अधूरी रह जाती,
कितने गीत घुट जाते,
कितनी कविताएं बिन ब्याही रह जाती,
कितनी किताबें अप्रकाशित ।

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23 FEB AT 23:33

इंसान को
इंसान माफ़ कर देता है ,
लेकिन उसके कर्म नहीं...

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17 FEB AT 19:20

that it's sacred and untouchable.

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12 FEB AT 18:26

सीने से लगाकर तुमने मुझे, आज़ाद कर दिया
इस क़दर बिछड़ने का, तुमने रिवाज़ कर दिया...

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7 FEB AT 23:30

पहली बार
इंसान सिगरेट पीता,
फिर आगे चल के
सिगरेट
इंसान को पीता है।

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3 FEB AT 0:04

दिया जलाया
उसे बहा दिया नदी में,
हम तुम जी सकते है
एक दूसरे के कमी में...

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30 JAN AT 10:48

गलत होना उतना गलत नहीं होता,
जितना कि सही होकर अपना अधिकार छोड़ना।

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