तेरा हाथ थामकर किसकी इबादत करूँगा,
तुझसे बेहतर मैं किससे मोहब्बत करूँगा ।
तेरे नवाज़े हुए लम्हों ने बहुत तोड़ा है मुझे ,
मैं फिर भी हर लम्हें की हिफाज़त करूँगा।।
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मेरे अंदर के जुनून तुम को हवा दे दो ,
अगर गलत हूँ मैं तो मुझे सज़ा दे दो ।
यूँ ना बेख़याली में अब भुलाओ मुझे ,
जिसमे गलती दिखे ऐसा आईना दे दो ।।-
सब लिखकर भी अधूरी कहानी रह गयी ,
दरिया तो सूखा मगर रवानी रह गयी ।
दराज़ में सजी है डायरी, वादों की तेरे ,
कुछ कसमें भी अभी निभानी रह गयी ।
मैं अकेला कब तक, यूँ टूटता रहूँगा ,
तेरे हिस्से की भी तो क़ुर्बानी रह गयी ।
मैं थोड़ा बदल गया हूँ पहले से शायद ,
सिर्फ लहज़े में मेरे नादानी रह गयी ।
कुछ लोग थे मुझको संभाले हुए ।
पलट कर देखा तो सिर्फ निशानी रह गयी ।
तवज्जों देने लगा हूँ जिम्मेदारियों को अब ,
बचपन तो जी लिया, मगर जवानी रह गयी ।-
मेरे अंदर है बसी कहीं यादें तेरी ,
तेरे जाने के बाद रह गयी यादें तेरी ।
सुकून था शायद तेरा चला ही जाना ,
मगर हमेशा सताती रही यादें तेरी ।।
मैं चाहकर भी कैसे माफ करूँ तुझे ,
बेवफाई ना भूलने देती यादें तेरी ।
बमुश्क़िल ही कभी तुझे रुलाया था मैं ,
मगर हर वक़्त है रुलाती यादें तेरी ।।
अब तो मोहब्बत किसीसे होती नहीं ,
हर रात मुझे है जगाती यादें तेरी ।
मैं तलाशता रहता हूँ कमी खुद में ,
मेरी मोहब्बत है दिखाती यादें तेरी ।।-
क्या खो दिया मैनें, क्या पा लिया मैनें ,
इसी सोच में ज़िन्दगी बिता लिया मैनें ।
डर है कि मेरे राज़ जान ना जाये कोई ,
ज़िन्दगी के संदूक में दफ़ना दिया मैनें।।
तेरी फ़िक़्र थी तुझे कभी रुलाया ना मैं ,
हैरत नहीं, कि खुद को रुला दिया मैनें ।
कहीं भींग ना जाओ तुम अश्क़ों में मेरे ,
तुझे खुशी की छतरी में छुपा लिया मैनें।।
कितना आसान था जितना भरोसा मेरा ,
अपनी बेवकूफी का तोहफा पा लिया मैनें।
अब बड्डपन कहो या कहो समझौता मेरा ,
बेईमानी को उनकी अब भुला दिया मैनें।।
अब ज़लील करो तुम या फिर मारो मुझे ,
खुद से किया हर वादा तो निभा लिया मैनें।-
उसके बालों से ये काले बादल हुए है ,
लगता है उसे देख कर पागल हुए है ।
कितने बरस रहे उसकी गली से आकर ,
उसकी आँखों से ये भी घायल हुए है ।।
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वो रास्ता भी आज बेनिशाँ हुआ है ,
जिसपर चलकर तू आसमाँ हुआ है ।
कभी मैं मुकर जाता था तुझे देखकर ,
आज तू खुद में ही पूरा जहाँ हुआ है ।।
मैं ज़रा सा उड़कर जमीं भूलता गया ,
तुझे तारों के बीच भी ना गुमाँ हुआ है।
मैं भागता रहा अकेला मंजिल को अपने,
तू सबको साथ लिए कारवाँ हुआ है ।।
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कुछ पुराने रिश्ते है पड़े दराज़ में ,
उन्हें ज़रा मोहब्बत की धूप दिखा देते है ।
निकला है खाली पेट अपनों की तलाश में ,
उन्हें बैठाओ, ज़रा लहज़े से भूख मिटा देते है ।।-
आज भी तुम्हें वो हसीन रात, याद है क्या ?
वक़्त तो काफ़ी बीत गया मेरा साथ, याद है क्या ?
वो हाथ थामे हुए हम जो सितारे देखते थे,
उन्हें देखकर बनाया हर ख्वाब, याद है क्या ?
हर पन्ने पर लिखा था, मैनें नाम तुम्हारा,
तोहफे में जो दी वो किताब, याद है क्या ?
भूलने में और भुलाने में बहुत अंतर है जाना,
मैं पूछता हूँ, उस रात की कोई बात याद है क्या ?
मुझे और मेरी बातें तो बेशक याद ना होगी,
तुम्हें खुद के वो झूठे जज़्बात, याद है क्या ?
ऐसा कैसा बिछड़ना की रक़ीब लौट आया,
तुम्हें उस रात की वो मुलाकात, याद है क्या ?-
मैं बिछड़ कर रोता रहा, वो मुस्कुराते गया
पलटकर मुझे ही वो आईना दिखाते गया
उसको फ़र्क़ कभी ना पड़ा हिज़्र का अपने
वो आगे बढ़ता रहा, पीछे सब भुलाते गया
मैं ही बेवकूफ था जो मिन्नतों में लगा रहा
मैं एक खुशी से ही अपना हाथ हिलाते गया
दोनों ने गिरायी थी अपनी अकड़ जहाँ पर
मेरी तो वहीं रही, पर वो अपनी उठाते गया
मैं चाहता तो जीत जाता उससे उस वक़्त भी
मगर वो तो मोहब्बत के नाम पर हराते गया
क्यों, तूने तो सब सिख रखा था न 'प्रकाश'
मग़र वो एक शख़्स तुझे जिंदगी सिखाते गया-