निश्चित ही प्रेम
एक विषम संख्या है,
इसे कभी भी दो बराबर
भागों में नहीं बांटा
जा सकता॥
-आर्या पराशर🎭-
मैने रातों को जागकर देखा है,
सुबह होने मे,
वर्षों लगते हैं॥-
सिर्फ वो बातें,
जो नहीं कहनी होती किसी से,
दिवारें नहीं सुनती तब,
जब होता है हमारे पास,
बातों का एक सैलाब॥-
हमारे साथ
बचपन से
ऐसा ही हुआ,
जब तक
पैसे जमा
किये,
पसंद का
खिलौना
बिक चूका था।
-
कैसे हो ?
...ठीक हूँ !
तुम कैसी हो ?
....मैं भी ठीक हूँ।
इन ऊपर की चार पंक्तियों का
सिटी स्कैन किया जाये तो हज़ारों
दुःख, लाखों ख्वाहिशें, बेहिसाब
दफ़न हो चुके सपने, और करोड़ों
सब्र का ताला मिलेगा, जिनपर
" ठीक हूँ " की एक मखमली
चादर ओढ़ाई गयी है।-
जटायू को पता था की वो
रावण से युद्ध नहीं जीत सकते,
परन्तु फिर भी वो लड़े, ताकि आने
वाली पीढ़ियां उन्हें कायर ना कहें।
कभी-कभी कुछ लड़ाइयां जीतने
के लिए नहीं, हारने के लिए भी
लड़नी पड़ती है।-
लड़के रो नहीं पाते,
वो अपने दुखों में किसी पहाड़ की तरह खड़े होते है और उन्हें सहारा देने वाले नहीं, ताने देने वाले होते हैं, वो अन्दर ही अंदर टूटकर बिखरते रहतें हैं रेत की तरह।
इसीलिए पृथ्वी पर नदियों से ज्यादा पहाड़ और रेत हैं।
-आलोक प्रकाश🎭-