Alok Ownkriti   (आलोक ownkriti)
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Joined 4 March 2018


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Joined 4 March 2018
26 FEB 2022 AT 7:30

युद्ध हल नही बात हर किसी को भान है।
फिर क्यों बेबसी मे पिस रहा इंसान है।।
अहम का टकराव या टकराव ही विकल्प है।
सियासती नफा नुकसान का होता यही परिणाम है।।

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18 OCT 2021 AT 22:33

उम्मीद ए उल्फ़त में जीवन बिताते हैं।
पल भर में चूर सपनो का घरोंदा बनाते है।।
आज है कल हो नही खबर किसको यहाँ।
कल होगा हसीन ताउम्र फितूर चलाते है।।

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17 SEP 2021 AT 15:38

शब्द हमारे परखें जाए,मोल तोल में जाने जाए।
तेरा यदि उल्लेख करें,बैरी भक्त पुकारे जाए।।
यदि भगवान नही तू,तो भक्त हुए हम कैसे।
लगता होगा उसको यू,जो हमको भक्त बनाय।।

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15 SEP 2021 AT 15:31

न उम्मीदी को अवसर मत दो,
जिसका भी हो बहुमत मत लो।
अपनी खुदगर्जी में रहना सीखो,
ख़ुद के सपनो को मरने मत दो।।

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18 MAR 2021 AT 13:32

समय पालता है समय मारता है
जीवन मे क्या है, कौन जानता है।
पलभर जिओ जिंदगी भर जिओ
साथ कबतक का है, कौन जानता है।
अभी धूप है तो ये जीवन खिला है
अंधेरे में क्या है,कौन जानता है।
साथ चलना न चलना मुक़्क़द्दर है,
कहा तक चलोगे कौन जनता है।
उसी की नेकी उसी की रजा है,
उसकी रहमत को, कौन जानता है।
हम तुम्हारे लिए है ये भी सही है
फ़साना ग़र होगा,कौन जानता है।
मुस्कुराने की तुम बस वजह ढूंढ लो,
आँशुओ का क्या होगा,कौन जानता है।
आलोक की ख़बर है किसको यहाँ,
मन ईश है भी कोई, कौन जानता है।।

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3 MAR 2021 AT 0:11

असर बहुत होता है,वक्त पैसा का ही तो है,
दिल क्या होता है,सारा दिमाग का ही तो है।
कसूर क्या होता है,सबकुछ हालात का ही तो है।




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1 JAN 2021 AT 8:51



हो आलोक भरा इक्कीस,
पीछे रह जाए वो बीस।
मंगलमय हो साल सभी का,
खुशियां भर लाए इक्कीस।।

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1 AUG 2020 AT 18:36


क्रूर करोना ने सबको जब घर में कैदी कर डाला।
पूछो इतना क्यों इठलाती घूम रही साकीबाला।।
हाले ने तब प्याले से बोला अमर रहेगा मयखाना।
बन्द रहेंगे मन्दिर मस्जिद खुली रहेगी मधुशाला।।

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15 MAY 2020 AT 22:24

जो चाहा था हमने कहां मिल रहा,
जीने का न कोई जहां मिल रहा।

भूख से भागने की फितरत है मेरी,
मुझे भूख का हल कहां मिल रहा।

उर के छालो का मरहम बनाते रहे,
पांव के घाव भरने कहां मिल रहा।

शहर सदियों बसाए कितने मगर,
दहर में न शहर अपना मिल रहा।

जहर फैला शहर में कभी भी कहीं
शहर से निकाला पहला मिल रहा।

मौत से डरने की है फुरसत किसे,
गरल से भरा हर निवाला मिल रहा।

पांव थकते है पर कभी रुकते नहीं,
रुकने का कब ठिकाना मिल रहा।

निजाम या इंतजाम कोई भी हो,
बातो का ही बस आसरा मिल रहा।

बातो से पेट भरता तो क्या कहना,
हर बात में चर्चा हमारा मिल रहा।

आलोक शहरों में खूब बिक रहा,
हमारे हिस्से बस अंधेरा मिल रहा।।

🙏🙏 आलोक ownkriti

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3 MAY 2020 AT 13:50

समय के फांस में उलझे समय से दूर है हम।
प्रेम के अश्क को समझे मगर मजबूर है हम।।
लॉकडाउन करोना की कुआं खाई में फसे हम।
सुदूर भूख से तड़पे शहर में मजदूर है हम।।

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