ससुराल मैके से भी आगे,
अपना एक घर है,
ऊंचाई है अपना लक्ष्य,
गिरने का ना अब डर है,
पंख खोल उड़ना है,
अब आसमाँ अपना शहर है...-
कुछ यूँ तुम मुझसे पराई हुई,
लिखी गज़ल थी मेरे हाथों से,
किसी और के होठों से सुनाई गई..!!-
ठिठुरते ठण्ड मे एक जलती अलाव सी हो तुम,
बैठ कर जिसके आगोश में मिल जाये सुकून,
वो सुकून सी हो तुम...-
चौदहवीं का शब है, तुम हो
फ़लक पे एक चाँद है, ज़मीं पर तुम हो
यूँ तो जहाँ में और भी हैं बहुत,
पर मेरा सारा जहाँ सिर्फ तुम हो
मैं एक छोटा सा टिमटिमाता तारा,
मेरा सारा आसमाँ तुम हो
जो लिखी ना हो तुम तक़दीरों में,
तो हर लकीर से है कहना, मेरी तुम हो...
चौदहवीं का शब है, तुम हो
फ़लक पे एक चाँद है, ज़मीं पर तुम हो...-
पढ़कर जिसे तुम्हारी आँखों में अश्क है,
मेरी सोचो मैंने तो उसे लिखा है..-
जो पास नहीं है, क्यों है उसका ग़म
क्या है जिसे ढूंढ रहे हम,
किसके पीछे आखिर भाग रहे हैं हम,
काल के हर क्षण मे स्थिर हो जाना,
यही तो ज़िंदगी का सौंदर्य है,
सौंदर्य जिसमें है शांति, मन की शांति
क्यों नहीं जो है उसके सौंदर्य में जी रहे हम,
क्यों जिंदगी के चंद आरामों की तलाश में
उम्र भर का सुकून खो रहे हम,
क्या है जिसे ढूंढ रहे हम,
जो पास नहीं है, क्यों है उसका ग़म..!!-
कितना गहरा इश्क़ है, बादलों का धरती से
वरना कौन गिरता है नीचे, ऊँचाइयों पर जाने के बाद..-
बारिश की बौछारों ने फिर एक कहानी लिखने का मौका दिया है,
आओ ना उँगली के पोरों से खिड़की पर एक दूसरे का नाम लिखे,
और हाथ के एक झटके से दोनों को एक दूसरे मे नेस्तनाबूद करें..-
असली कविता कागज़ों पर नहीं मिलती है,
उसकी स्याही अक्सर आँखों के नमकीन आसुओं में मिलती है...-
निकल दुनिया के शोर-शराबे से कभी,
तन्हाई से कर राब्ता कभी,
जो मिलना हो अपने अन्दर छुपे 'मैं' से,
तो खुद में झाँक के देख कभी..-