कुछ पल के लिए ही सही
मोहब्बत शब्दों में तो करो
कौन कहता है
जिंदगी अपनी छोड़ दे
एहसास में ही कभी
मेरे लिए भी तो मरो— % &-
हुआ आदमी जब से झूठा झूठे शब्द भी हुए हैं
धड़कन कलाइयों में दिल हाथों में लिए हुए हैं
आलोक चांटिया— % &-
जाने क्यों मेरा हिस्सा मेरा हिस्सा नहीं है
गर मोहब्बत यही तो यह कोई किस्सा नहीं है आलोक चांटिया— % &-
आंखों में जिसकी तस्वीर बसाने के जज्बात जब से हैं
मां भारती को दी जाने के ख्वाब मेरे तब से है
माना कि मसरूफियत बहुत बढ़ गई है आज आलोक
इस जमी से आलोक नाता वैसे जैसे उस रब से है
आलोक चांटिया— % &-
तुम्हारे खूब कहने की खुशबू कई बार मुझ तक आई है
सांसो की महफिल में तेरे होने की बजती शहनाई है
आलोक चांटिया— % &-
जिन अल्फाजों से मैं तुम्हें नवाजता हूं दिन बा दिन
वह कोई तिजारत नहीं एक सच है तुम्हारे बिन
आलोक चांटिया— % &-
उम्र की दहलीज को तोड़ कर आना मुश्किल है मगर
जिंदगी क्या नहीं कर सकती मोहब्बत हो अगर
आलोक चांटिया— % &-
तुम यूं ही गुजारती रहो रात और दिन समय की पनाह में
यह तो मोहब्बत है रुको मत कदमों को इस गुनाह में
आलोक चांटिया— % &-
मैं भरी महफिल में भी तुम्हारी बातों को समझ जाता हूं
अंधेरे का अक्स हूं निगाहों में आलोक को जब पाता हूं
आलोक चांटिया— % &-
माना कि तुम्हें फुर्सत नहीं है अंधेरों में जाने के लिए
फिर क्यों रोक रही हो आलोक को बार-बार आने के लिए
आलोक चांटिया— % &-