बेवजह बिखरा हुआ ये सिलसिला
और सारी ख्वाहिशें पूरी हुई..
ख़्वाब था जो, वो नहीं हमको मिला!!-
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बाबू, सोना, ढीमका, फलानो, सो गयो है के..
म्हारी ठेठ मा बोलै के, भोजण हो गयो है के'-
एक इंसान
अपने हिस्से की भूख, रोटी बचाकर
कमाता है कुछ कागज़ के टुकड़े, और
सहेजता है कल के लिए जब,
वो हस्पताल में होगा...
मरता है,
धीरे धीरे
मर जाता है हस्पताल में,
कोई बताएगा,
किसने मारा उसे?
और लोग,
भगवान का नाम लेते हैं!-
गुन से गुहार गढ़ लेंगे हम
चौसठ चहार चढ़ लेंगे हम
कल के कपाल चढ़ कलरव कर
लाली लिलार लड़ लेंगे हम-
शिखरों पर चढ़ने वाले हम
मुश्किल को मात चखा देते
पहरों को पढ़ने वाले हम
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कोरोना के फेर में, खेला सत्यानाश
चेला लखि आचार्य को, फेल हुए भी पास
फेल हुए भी पास, गुरूजी गड़बड़ झाला
छापो नंबर एक, मिठाई लाओ लाला
दुर्दिन ये आलोक, देश का है ये रोना
करके सत्यानाश, मिटेगा तब कोरोना-
व्यथित मन
है विकट वेदना
जीते जीवन।।
प्रेम प्रगाढ़
अंखियन सावन
तन आषाढ़।।
पी के दर्शन
बहुरत या मन
साधे जीवन।।-
वो आएगा, दरों को बात ये बताए रखा..
दीया, उम्मीद में मैं रात भर जलाए रखा
ख़ाका तैयार था जो इश्क़ का, मिटाता कहां
पैमाइश चांदनी की चांद को दिखाए रखा।।-
चांद,
करीब आए तो बताऊं क्या ख़ूब है
ऐसे तो हुस्न से भरा मेरा महबूब है...-