तू रख भरोसा ईश्वर पर, सब अच्छा ही होगा
जो सोचा तूने, उससे कुछ बेहतर ही होगा।
मत डूब चिंताओं के सागर में हे मन,
ईश्वर की लीला में ही बसा है सच्चा जीवन।
जो तुझे चाहिए, वो तुझ तक जरूर आएगा,
संघर्ष की इस राह में भी तू मुस्कुराएगा।
हर कठिनाई में है छुपा कोई संदेश,
हर अंधेरे के बाद आता है सवेरा विशेष।
तू जो चाहे, ईश्वर उससे बढ़कर देगा,
कभी देर से सही, पर वो हर इच्छा सहेगा।
मत उलझ अपने प्रश्नों में, ना कर संशय का वास,
उसकी मर्जी में ही छुपा है तेरा समस्त प्रकाश।
जब भी लगे कि राह नहीं मिल रही,
तो समझ ले कि कहीं और मंज़िल खिल रही।
मन को स्थिर कर, विश्वास का दीप जला,
हर एक दुख भी तुझे कुछ सिखाने ही तो चला।
तू कर प्रयास, बाकी उस पर छोड़ दे,
हर कर्म का फल वो ही तुझ तक पहुँचा दे।
कभी जो खोया है, शायद वो तेरा था ही नहीं,
और जो मिलने वाला है, वो तूने सोचा भी नहीं।
ईश्वर की योजना, तेरी सोच से विशाल है,
हर मोड़ पे उसका प्रेम तुझसे बेहिसाब है।
तो हे मन, चिंता में मत उलझ, बस प्रार्थना कर,
क्योंकि जो तूने मांगा, उससे बढ़कर देगा तेरा सरताज कर।-
तू रख भरोसा ईश्वर पर, सब अच्छा ही होगा
जो सोचा तूने, उससे कुछ बेहतर ही होगा।
मत डूब चिंताओं के सागर में हे मन,
ईश्वर की लीला में ही बसा है सच्चा जीवन।
जो तुझे चाहिए, वो तुझ तक जरूर आएगा,
संघर्ष की इस राह में भी तू मुस्कुराएगा।
हर कठिनाई में है छुपा कोई संदेश,
हर अंधेरे के बाद आता है सवेरा विशेष।
तू जो चाहे, ईश्वर उससे बढ़कर देगा,
कभी देर से सही, पर वो हर इच्छा सहेगा।
मत उलझ अपने प्रश्नों में, ना कर संशय का वास,
उसकी मर्जी में ही छुपा है तेरा समस्त प्रकाश।
जब भी लगे कि राह नहीं मिल रही,
तो समझ ले कि कहीं और मंज़िल खिल रही।
मन को स्थिर कर, विश्वास का दीप जला,
हर एक दुख भी तुझे कुछ सिखाने ही तो चला।
तू कर प्रयास, बाकी उस पर छोड़ दे,
हर कर्म का फल वो ही तुझ तक पहुँचा दे।
कभी जो खोया है, शायद वो तेरा था ही नहीं,
और जो मिलने वाला है, वो तूने सोचा भी नहीं।
ईश्वर की योजना, तेरी सोच से विशाल है,
हर मोड़ पे उसका प्रेम तुझसे बेहिसाब है।
तो हे मन, चिंता में मत उलझ, बस प्रार्थना कर,
क्योंकि जो तूने मांगा, उससे बढ़कर देगा तेरा सरताज कर।-
फ़र्ज़ के साए में
काश रूह के टुकड़ों की तरह,
किस्मत भी बाँटी जाती।
आधी बहू बन कर निभाती फ़र्ज़,
आधी बेटी बन पापा की साथी रह जाती।
जिस आँगन में पली थी कभी,
वो आँगन अब पराया हो गया।
ससुराल के रिश्तों में बंधकर,
मायका जैसे सपना पुराना हो गया।
फ़राज़ की तरह हर बात पर मुस्काती है,
पर दिल में कुछ चुपके-से छुपाती है।
पिता की आंखों में अब वो चमक नहीं पढ़ पाती,
उनके चेहरे की थकान भी नज़र नहीं आती।
जिस उंगली को थामकर चली थी पहली बार,
आज ज़रूरत में वही हाथ थामना भूल गई।
रिश्तों के इस नए सफ़र में,
पुराने लम्हों को जीना भूल गई।
बेटी थी, पर बहू बनकर निभा गई,
हर रिश्ते की ज़िम्मेदारी उठा गई।
पर कहीं उस ज़िम्मेदारी के बोझ में,
अपनी पहचान तक भुला गई।
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ख़ामोशी का रिश्ता
कहने को साथ है ज़िंदगी भर का,
पर हर पल में छुपा है कोई दर्द गहरा सा।
मिलते हैं नज़रें, पर बात नहीं होती,
मन की दीवारों पे अब बस चुप्पी ही होती।
ना कोई शिकवा, ना कोई जवाब,
बस एक साया है, जैसे कोई ख्वाब।
रिश्ते की रौशनी अब मद्धम सी है,
हर मुस्कान के पीछे एक थकावट सी है।
चाहा था साथ चलना उम्र भर,
पर लफ़्ज़ों ने साथ छोड़ दिया कहीं पर।
अब ना कुछ कहने को है, ना सुनने को,
बस दिलों में कैद है ये ख़ामोशीयों का झोंका।
फिर भी निभा रहे हैं ये अनकहे फ़र्ज़,
जैसे कोई कहानी अधूरी, बिन अर्थ।
कभी जो था अपना, आज अनजाना सा है,
ये रिश्ता अब बस एक पुराना किस्सा सा है।
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ज़िंदगी
ज़िंदगी क्या है —
यही सोचते-सोचते
खुद से एक मुलाक़ात हुई।
कुछ सपने थे,
जो अपनी आँखों में पलते रहे,
कुछ चाहतें थीं,
जो अपनों की आँखों से झाँकती रहीं।
थोड़ा जीना था —
किसी और की ख़ुशी में,
थोड़ा थामना था —
अपने भीतर की तन्हाई को।
कुछ पल हँसी के भी थे,
जो यूँ ही मुस्कुरा गए
और कुछ उदासी की लकीरें,
जो चुपचाप दिल पर उतर आईं।
इन टुकड़ों को जोड़ा
तो जाना —
ज़िंदगी कोई मुकम्मल तस्वीर नहीं,
बल्कि अधूरे रंगों से बनी
एक चलती फिरती कविता है।
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ज़िंदगी बस एक बार मिलती है,
हर लम्हा अनमोल है, हर साँस एक तोहफ़ा।
इस भागती दौड़ती ज़िंदगी में
कुछ पल तो अपने नाम भी कर लो।
मरने से पहले जी लेना जरूरी है,
ख़ुद को महसूस करो,
अपने दिल की आवाज़ सुनो।
कभी तो अपनी रूह से भी बातें करो।
क्या है दिल की आरज़ू,
कभी उसे भी मुकम्मल होने दो।
बिना किसी डर, बिना किसी शिकवे
बस अपने लिए भी एक दफ़ा जी लो।
ये ज़िंदगी तुम्हारी है,
इसे ओढ़ो, इसे अपनाओ —
एक बार ख़ुद का होकर,
सच में जीकर तो देखो।
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🌸 इन फूलों से खिलना सीख 🌸
महकते फूलों को देखकर मन मुस्कुराने लगता है,
हर रंग में जैसे कोई नया सपना सजता है।
कोई साथ हो या न हो, ये खामोशी कुछ कह जाती है,
इनकी खुशबू हर ग़म को चुपचाप सहलाती है।
जब दिल उदास हो और राहें सुनसान हों,
तब ज़रा ठहर, इन फूलों की मुस्कान सोच।
हर कांटे के बाद भी जो मुस्कुराते हैं,
वो फूल हमें जीने का ढंग सिखाते हैं।
वक़्त अगर मुश्किल हो, तो टूट मत जाना,
इन फूलों की तरह फिर से खिल जाना।
कभी खुद के लिए भी जीना सीख —
इन फूलों से खिलना सीख...
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Sundays with Dad
Sundays with Dad
Are the best, happiest days.
All the time is mine—
To play, to walk,
To eat together, and talk.
We laugh in the sun,
We race leaves in the breeze,
He lifts me up high
Like I'm touching the sky—
In those moments, I'm free and at ease.-
A Daughter’s Whisper – For You, Papa
I hardly get to meet you now,
But it doesn’t mean you’re not around—
You're in my thoughts, through silent days,
In quiet smiles and hidden praise.
I seldom call, I seldom write,
But in my dreams, you hold me tight.
One corner of my heart—it's true,
Forever beats just just for you.
I think of days, now far behind,
When your strong hands would shelter mine.
I held your finger, learned to walk,
Fell, then rose—through your sweet talk.
I'd rest my head upon your arm,
Safe in your love, so calm, so warm.
You taught me how to stand and fight,
To find some peace in darkest night.
I miss your food, that simple grace,
The care you poured in every taste.
I miss you most when I now cook—
Your recipes, your gentle look.
Each moment—yes, you're on my mind,
Though words and time are hard to find.
Life changed, new roles have filled my days,
Yet my love hasn't lost its ways.
For every tear I hide inside,
For every smile I set aside—
I want to say what’s always true:
Papa, I deeply love you.
Happy Father's Day.
From your daughter, still your little girl at heart.
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कहाँ खो सी गई हूँ मैं
किन जज़्बातों में उलझ गई हूँ,
बेकाबू हालातों में फँस गई हूँ।
मुस्कान की चादर ओढ़े,
उदासी में लिपट सी गई हूँ।
ख्वाहिशें छुपाते-छुपाते,
थक कर कहीं रुक सी गई हूँ।
ज़रूरतों के बोझ तले,
कहीं खुद से ही बिछड़ सी गई हूँ।
सपनों के शोर में गुमनाम सी,
चुप्पियों की जुबां बन गई हूँ।
जो थी कभी खुली किताब सी,
अब बंद एक कहानी बन गई हूँ।
हर मोड़ पर खुद को ही ढूँढती,
अजनबी राहों की मुसाफिर बन गई हूँ।-