ALISHA   (अलिषा .....)
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Joined 23 May 2020


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6 SEP AT 9:09

दुआओं में मौत मांगना गुनाह है क्या ?

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5 SEP AT 22:46

अंगारों से छालों का ताल्लुक कितना गहरा है
चांद से चकोर का मेल जैसे रहता अधुरा है

पानी बिना मछली कैसे तड़प सी जाती है
हवा के साथ जैसे सांसें आती जाती है

एक तरफ़ की आंधी जो रेत बहा ले जाती है
पर्वत जैसे खुद झीलों को सजाती है

बलखाती इठलाती थोड़ी बूंदें जो आतीं हैं
रुकतीं कहा है वो बह ही जाती है

जिंदगी में भी कितनी चंचलता आती है
सब कहां दूर हो पाती है

कुछ मलाल के लिए आती है
तो कुछ सिख देकर जाती है

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5 SEP AT 19:01

टूटें हो तो खुद को ज़रा और तोड़ लो
कोई बोले तो गलती अपनी बोल दो
मज़ा क्या तकलीफ़ ना मिले ग़र
तकलीफ़ में भी खुद को ज़रा जोड़ लो
साथ खुद का देना हो तो किसी का इंतजार क्यों करना
कोई साथ हो कर‌ भी अपना न लगें
तो उस रिश्ते को फजूल में क्यों ढोना
कफ़न मे लिपट कर जब अकेले ही
अलविदा लेना है एक दिन
तो हर पल किसी के कंधे को अपना घर क्यों करना

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3 SEP AT 23:28

भारी मन


..कितना अकेलापन है अपनों के साथ भी अब
लोग बंधन में तो है मगर बेज़ार अब
कहना बहुत है पर लफ़्ज़ों में कहा आसान अब
बिना बोले समझ पाएं रिश्ते कहा रिश्ते इतने ख़ास अब
वक्त देने से ज्यादा वक्त कितना दिया ये हिसाब गिनते हैं
लोग अपने हिसाब से लोगों का हाथ पकड़ते हैं
फिर छोड़ देते हैं बीच राह में ऐसे
जैसे पांव के छाले दाग में बदलते हैं

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22 MAR AT 11:56

मुश्किल कितनी भी हो
बेचारे पन का मुझमें ज़रा अभाव मिलेगा

हालात डगमगाने लगें तो
'महादेव' का मेरे जीवन में राग मिलेगा

कश्ती डुबेगी ग़र कहीं
तो हौसलों में उबाल मिलेगा

मैं वो‌ किनारा रहूंगी
जिसमें भटकते को सहारा मिलेगा

इरादे फौलादी न बन सके तो भी
चिंगारियों में सुलगता आग मिलेगा

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13 MAR AT 17:00

अकेलापन एक राज़ है
लोगों में ना बिखरे वो एहसास है

जिनको मान कर साथी भीड़ को छोड़ा हमने
वो भीड़ में हैं अक्सर मुझे भूल कर

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13 MAR AT 16:51

खुली जो किताब एक तो हजारों बात बदल गई
हम हंसने लगे जब तो कितनी नज़र गर गई
कहना था इतना कुछ पर साथियों का मिजाज बदल‌ गया
दिन ऐसे बिता कि मंज़र मचल गया
चलते चलते रंगों ने गहराई छोड़ दी
हमने मुस्कान छोड़ दी उसने दाग छोड़ दी
हम खो गये एक रोज जब उसने फिर तलाश छोड़ दी
छोड़ कर रंगों की होली उसने मेरे आंखों में धूंध छोड़ दी

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13 MAR AT 16:32

किन ख्यालों को चुनें जो हकीकत में बेगाने हैं
जो अपना कहने वाले हैं वो खुद में खो जाने हैं
यहां सब के मन में धोखा है कोई दिखाता है तो कोई छिपाता
उनको इज्जत भी दे दो फिर भी इज्जत मिलती कहां
जिसके हरकतें फ़रेबी की है वो दोस्त तो नहीं
अकेलापन सब में हैं मगर जो झूठा है वो ढोंग में मसरूफ कहीं
सब अपना ही देख लें किरदार..... दाग तो सबमें है कोई सफेद हो पूरा ये सच नहीं

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25 FEB AT 21:40

ख्यालों का बड़ा होना
इंसान का बड़प्पन दिखाता है

उम्र से बड़े हो जाना
हर बार समझदारों में नहीं आता है

नई सोच रखने वाले खुशियां चुनते हैं
बोझिल मन का आदमी मौन

अंधेरे में टीका इंसान उजाला नहीं मांगता
उजालों में रहने वालों को भी अंधेरे में टान लेता है

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27 JAN AT 0:50

ख्यालों सा मंज़र गर हकीकत में होता
जो मन को लुभाए वो सब सच होता
लोगों में अहंकार कम और मुहब्बत घर करता
ये जीवन तब कितना खूबसूरत लगता
ना कोई रिश्ता टुटता ना टुटता ख्वाब
रात का अंधेरा ना जाने कितनों को शीतल रखता
शायद कोई ऐसा भी मंज़र होता
जिसमें भोलापन धोखे का शिकार न होता

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