मुश्किल कितनी भी हो
बेचारे पन का मुझमें ज़रा अभाव मिलेगा
हालात डगमगाने लगें तो
'महादेव' का मेरे जीवन में राग मिलेगा
कश्ती डुबेगी ग़र कहीं
तो हौसलों में उबाल मिलेगा
मैं वो किनारा रहूंगी
जिसमें भटकते को सहारा मिलेगा
इरादे फौलादी न बन सके तो भी
चिंगारियों में सुलगता आग मिलेगा
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किस्मत की कोई किताब नहीं होती
मेहनत की स्याही से लिखनी होती हैं।
🌼महादेव lover... read more
अकेलापन एक राज़ है
लोगों में ना बिखरे वो एहसास है
जिनको मान कर साथी भीड़ को छोड़ा हमने
वो भीड़ में हैं अक्सर मुझे भूल कर
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खुली जो किताब एक तो हजारों बात बदल गई
हम हंसने लगे जब तो कितनी नज़र गर गई
कहना था इतना कुछ पर साथियों का मिजाज बदल गया
दिन ऐसे बिता कि मंज़र मचल गया
चलते चलते रंगों ने गहराई छोड़ दी
हमने मुस्कान छोड़ दी उसने दाग छोड़ दी
हम खो गये एक रोज जब उसने फिर तलाश छोड़ दी
छोड़ कर रंगों की होली उसने मेरे आंखों में धूंध छोड़ दी-
किन ख्यालों को चुनें जो हकीकत में बेगाने हैं
जो अपना कहने वाले हैं वो खुद में खो जाने हैं
यहां सब के मन में धोखा है कोई दिखाता है तो कोई छिपाता
उनको इज्जत भी दे दो फिर भी इज्जत मिलती कहां
जिसके हरकतें फ़रेबी की है वो दोस्त तो नहीं
अकेलापन सब में हैं मगर जो झूठा है वो ढोंग में मसरूफ कहीं
सब अपना ही देख लें किरदार..... दाग तो सबमें है कोई सफेद हो पूरा ये सच नहीं-
ख्यालों का बड़ा होना
इंसान का बड़प्पन दिखाता है
उम्र से बड़े हो जाना
हर बार समझदारों में नहीं आता है
नई सोच रखने वाले खुशियां चुनते हैं
बोझिल मन का आदमी मौन
अंधेरे में टीका इंसान उजाला नहीं मांगता
उजालों में रहने वालों को भी अंधेरे में टान लेता है
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ख्यालों सा मंज़र गर हकीकत में होता
जो मन को लुभाए वो सब सच होता
लोगों में अहंकार कम और मुहब्बत घर करता
ये जीवन तब कितना खूबसूरत लगता
ना कोई रिश्ता टुटता ना टुटता ख्वाब
रात का अंधेरा ना जाने कितनों को शीतल रखता
शायद कोई ऐसा भी मंज़र होता
जिसमें भोलापन धोखे का शिकार न होता
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ग़म अब भी है अब भी वक्त बदला नहीं
मैंने ढूंढ़ा जो मुकाम वो अब तक मिला नहीं
मैंने हर रिश्ते में अपना वजूद जलाया है
आग लगाकर भी हलचल थमा नहीं
लोगों को प्यार जितनी जरूरत नहीं थी
हमने उस हद तक रिश्ता निभाया है
जमाना हमबिस्तर का है
नज़ाकत में मुहब्बत समझ कहां आएगी
कोई भी हो फक़त खेल समझता है हर चीज को
अहमियत से कहां बंधनो को जोड़ें रख पाएंगी
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कुछ यादें हैं जो खुबसूरत है
एकतरफा ही सहीं पर मेरे अपने हैं
हर किसी ने धोखे से खेल लिया अपना दांव
हम बेबस रहे उनके मोह के साथ
याद हर बात है हर चोट का है हिसाब
मुंह मोड़ लूं ग़र तो भी कुछ नहीं बात
जिंदगी के मोड़ पर फिर कभी ना मुलाकात चाहूं उनसे
जैसे भी रहूं मैं मेरे लिए सोचूं सहीं रहूं या गलत बेशक-
Us din ko yaad kr bahot roi ye ankhe
Jab kisi ne hume andr tak jhakjhora tha
Humne socha tha wo khata dohrayenge nahi kavi pr
Halt ke mare humne bah fir se kisi ka pakra tha
Usne yakeen dilaya tha hume ki wo wesa nahi h
Jab waqt bita to ahsas hua ki waqt wesa nahi h
Mai akeli kafi khus reh leti par yaad aaya me wesi v nahi bachi hu ab kehne ko khud se ye...-
एक चीख उठी फिर थम गई
वो तड़प तड़प कर मर गई
कपड़े को नहीं स्वाभिमान को छिना गया
आत्मनिर्भर थी वो उसका विश्वास टूट गया
मौत को गले लगा कर उसने एक और काम किया
इस समाज को जगाया और अपना बलीदान दिया
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