Alfaaz -e- Rooh   (Alfaaz-e-Rooh)
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Joined 9 February 2019


Joined 9 February 2019
24 JUN AT 13:54

मौत बरहक़ है...
मौत से कौन लड़ेगा...
ज़ख़्मों को साथी बनाकर, दर्द से दोस्ती कर ली है...
बेशक, मुझे मौत नहीं , किसी की याद मारेगी...

Death is indeed certain , who can escape it?
I’ve befriended my wounds, made pain my companion.
Without a doubt, it won’t be death that ends me ,
It will be the weight of someone’s memory.

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12 JUN AT 8:01

I could sense the words, she was bleeding blue...

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12 JUN AT 7:30

Bin kuch kahe , ek din achaanak ....
Koi gayab hojae to wo isq ki kardiyan kyun hi judengi.....

- Unspoken Silence

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5 JUN AT 23:28

Hajj - Eid Mubarak
बड़ी मुद्दत से ये खुशियाँ आई हैं...
अराफ़ात से ईमान वालों की कुछ झलकियाँ आई हैं...
एक लुक़मे की, एक लज़्ज़त की क़ुर्बानी न दे सके...
जीना चाहते वो दुनिया, जो हमने बनाई है...
शहीद हो गए जो दीन की खातिर,
हँसते-हँसते अपनी खुशियाँ गँवाई हैं...
करने चले आपके जिगर को क़ुर्बान...
90 साल बाद जिन्होंने खुशियाँ पाई हैं...

बन गए वो मिसाल...
छोड़ गए वो सवाल...
जब लौट के जाना है उस रब के पास एक...
क्यों करते हो रश्क, क्यों मचाते हो बवाल...

ज़रा में टूट गए हम,
चंद अशर्फियाँ गँवाई हैं...

भाग-भाग के थक गए एक बाप...
पूछो जिसने बच्चियाँ बियाही हैं...
अब भी साँसें हैं, अब भी वक़्त है...
सँवार लो आख़िरत,
संभाल लो जो चंद नेकियाँ पाई हैं...

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23 MAY AT 21:14

काग़ज़ से क़लम तक का सफ़र है...
फ़तवे से तक़वे तक का सफ़र है...
जिस्मानी जंग में क़ुर्बान तो क्या क़ुर्बान,
ज़ेहनी से रूहानी जंग तक का सफ़र है...
कितने फ़ौलाद पिघल गए आकर यहाँ तक...
ज़िंदगी आदत से इबादत तक का सफ़र है...

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18 MAY AT 16:58

Labho jab aae nam e Mustufa....
Toh kaise hojae ziandagi se khafa....
Unhone zindagi jeene ki di hidaayaten....
Jispe chal hume miljaegi khud ki raza...

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16 MAY AT 8:04

वो इश्क़ के नुस्ख़ सुनाने लगे,
हमने ग़ज़ल छेड़ी तो उठ जाने लगे।
बेशक हमने हाल पूछा था उनसे,
अशआर हमारे उन्हें बहाने लगे।
अब घर से निकलना हुआ है मुश्किल,
गुस्ताख़ियों के चर्चे मोहल्ले तक आने लगे।

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12 MAY AT 10:30

समझदारी का हैज़ा , इल्म के दस्त |
जो कहते ख़ुद को गुनाहगार, वही निकले सरपरस्त |

करते है तुझसे मोहब्बत, जितनी है नफरत,
ना बदलती है आदत, ना ही फितरत |










Open for collab
To be continued ....

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11 MAY AT 14:17

Mommy!

"Do qadam chalaa, to laga rukhsat ki ghari hai...
Ye hijrat meri azmaish me khadi hai...
Sahil(sea shore) pe sabko apnon ke muntazir(waiting) hai,
Hum musaafiron ko kisko padi hai...
Jab se nikla hun ghar se,
Wo janamaaz(prayer mat) pe khari hai...
Choti choti rassion ko jodne me umar kat gai...
Meri Ma ki dor toh sabse badi hai...
Jis kinare ko chor aaya hun mai,
Are Wo toh usi kinaari khari hai...
Hum to musafir hai,
Humari kisko padi hai..."


2 क़दम चला, तो लगा रुख़्सत की घड़ी है...
ये हिज्रत मेरी आज़माइश में खड़ी है...
साहिल पे सब अपनों के मुन्तज़िर हैं,
हम मुसाफ़िरों को किसको पड़ी है...
जब से निकला हूँ घर से,
वो जानमाज़ पे खड़ी है...
छोटी छोटी रस्सियों को जोड़ते में उम्र कट गई...
माँ की डोर सबसे बड़ी है...
जिस किनारे को छोड़ आया,
वो तो उसी किनारी खड़ी है...
हम तो मुसाफ़िर हैं,
हमारी किसको पड़ी है..."

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11 MAY AT 12:19

जिसे पाने की चाहत में,
ज़माने छोड़ आए....
फिर उसे ही खो जाने की चाहत में,
बातें मोड़ आए....
हमें क्या पता था, ये बारिश नहीं तूफान है...
हम यादें ले आए , इरादे छोड़ आए...
सब्र से साबित क़दम, यक़ीन है थोड़ा कम...
फरियादें ले आए, वादे छोड़ आए...

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