बारिश की हर एक बूंद
मुझे कलापूर्ण पर व्यथा
से भरी लगती है
है तो इनका कोई रंग नहीं
पर दिखता इनमे हर रंग है
व्यथापूर्ण भी है
क्योंकि इनका अंत तो
सूखी जमीन ही है-
हम शायरी लिखते रहे गए
चमक-ए-चांद पे
उधर चंद्रयान ने कहा
चल तुझे हकीकत-ए-चांद
से रूबरू करवाऊं-
रात छोटी थी तो मुलाक़ात लंबी नहीं कर पाए
वो आते ही चल दिए हम बांहों में भी भर न पाए
कमबख्त ये बारिश भी जब थमी तो दोबारा नहीं आई
उनसे दो-चार प्यार की बातें भी ना कर पाए-
चाह मेरी यही की तुम मेरे प्रेम में
राधा रुक्मिणी मीरा हो जाना
लेकिन "ज्योति" कभी न होना-
बारिश की बूंदे
सिर्फ सुकून नहीं देती
अपितु क्रांति करती है
किसान एवं भूमि की
सम्पूर्ण उदासी के खिलाफ-
विधना का छल देखिए, खेला कैसा खेल
अपनो को छीना अपनो से, जान ले गई "रेल"-
लिखे हुए चुम्बन कभी पहुंच नहीं पाते
अपनी मंज़िल, प्रेतत्माएं
उन्हे बीच रास्ते में ही रोक लेती है-
पुरुष प्रेम का भागीदार सिर्फ तब तक होता है
जब तक की वो
गृहस्थ आवश्यकताओं की पूर्ति करता रहे-
इक रात उनसे मुलाक़ात करके जाना
होंठो का कोई स्वाद नहीं होता
एक वहम टूट गया...-
प्यार बेशक अंधा होता है
मगर रिश्ते ढूंढते हैं
गोरा रंग, जमीन एवं नौकरी-