9 MAY 2018 AT 23:46

खंज़र के साथ जीना यहीं है
पीठ यहीं है, सीना यहीं है

मयकदे साक़ी से गिला नहीं
ज़ाम यहीं है, पीना यहीं है

बाकमाल लगता है बियाबान
डाकू यहीं है, हसीना यहीं है

बूढ़ा दरख़्त है मेरे आँगन में
मक्का यहीं है मदीना यहीं है

खुद्दारी की रोटी पकती है यहाँ
हल भी यहीं है, पसीना यहीं है

- आला चौहान "मुसाफ़िर"