अक्षयकुमार ✍   (@ गीतकारों के अल्फ़ाज़ों)
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Joined 8 March 2019


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Joined 8 March 2019

दूरियाँ बढ़ाने को शक्ति तुमको दिया गया।
फिरभी एक बारी नहीं तूनें दिया गया
वो दूरियाँ। तूनें ख्वाहिशें बनीं थीं,
पनाहें बनीं थीं। फिरते उड़ते पंचियों से
क्या देखा हो तुम। कोई नहीं सहारों
बनीं वैसे ही तुमहीं बनीं।

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मेरा नामक तू ही है।
मेरी आँखों में भी तू ही।
नैन तरसते रहे हैं फिरभी
सूखी ये दिल।
तुम जो कहाँ कहाँ है?
मेरी दिशा कहाँ है।
मेरे देशों सभी प्यार।
मैं विधुरसा तू अधूरसा।
जी रहें हैं हम।

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तुमहो या हमतो ख़ुशी के धागों पकड़ें।
धागों या लोगों दोनों बिछड़ते रहें हैं।
तुमहीं है या हमीं है कि राहतें पकड़ेंगे।
इन्हें बचाते हुए है क्या? उन्हें हमें हैं।
तू तो ही नैनों को सारा। काश कोई
फ़िक्र नहीं तो न बिछड़ते राहतें होगें
हमें। इनकी मदद करनेवाली
तुम हो। तू ही तो जाँ रे।

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करते तो लोगों कहतेंगे सारे नियमों।
शर्त है तो लोगों लेनेवाले पूरे नियमों।

धरती पर परमात्मा केवल नेता हो।
शर्मनाक हरकतों पर गोरे नियमों।

फितरतों से जी रहें हैं तारें सारे।
क़ुर्बतसे पीने के मौसमों पे हारें नियमों।

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इक दिन या इक रात्रि आये तो वो रहता।
इक बार या इक इकट्ठे होते तो वो रहता।

मन को भी खोल दिया गया फिर क्या?
सुनसका है तो सुबहाका ग़ुलाब जो रहता।

मेहेंगे मौसमों पर एक ही बारी में आयें ना।
परम्परागत की तरहा तो वो रहता।




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मौन लूँ तुम्हें होनेसे।
क़ातिलों आँखें हैं, पीड़ितों हमतो हैं।
कालाधन रखने वालें को होंगें घबराहटें।
जो घबराहटें हमसें हुए हैं।
यारा लगी हैं गीतों सारी ग़ज़लों की तरहा।
पता नहीं है लफ़्ज़ों तुम्हारें।
मौन सिर्फ़ बर्फ़ सा यहीं हैं।

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पीछे छोड़ दिया हर काम।
नीचे बैठकर किया नाशता।
लेकर चलता हूँ हर कोई दाम।
तन्हा दिलों में रहेंगें लोगों बीचता।
वो ख़ुदा जाने पर क्या है हर नाम?
कल तक संग्राम मातृ मिट्टी में रहा था।
फ़ासला मिट्टीमें अबतक अधिक हुआ था।
कोई नहीं कर दिया गया दर्दभरी सत्ता।

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तुम लग जा गले।
और हम टुकड़े हुए।
नामक का स्थान प्राप्त किया।
फिर सूखी कुंआ क्यों हुआ?
भटके नौजवान हूँ मैं।
पत्ता लटके पड़ेंगे हिसाब से,
ये जश्न ए बहारा में। तिषणगी न जानें असली चेहरे पर चुम्मा धीरेधीरे करें। प्यार में रहें तो थोड़ा रुकने वाला सा कुछ छलका हूँ मैं।

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दिलों की तरहा ही सुबहा।
फूलों से हमसें ये ख़ुशबू।
कलमा सा तुझें मैं पढ़ता हूँ।
भूलने वालें को भी रहेंगें
ये विश्वासों हूबहू। ख़ुदा तुझें
जानने पर मैं मरता हूँ।
ख़ुदकुशी लेती हैं हराम की बातें।
जब तुमसे हमनें जानें पर।

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नियमों में रहेंगें तो न जाने तुम्हें जुनूँ।
सिर्फ़ ईमानदारी तो न जाने तुम्हें मेहमाँ।
क़समें तोड़ते हुए है तो न जानें तुम्हें वादें।
कुछ मज़ाक़ बना दिया गया था परेशाँ।
राज़ किया जा रहा तो न जानें निशाँ।




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