Akshu Singh   (Akansha Singh)
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Joined 12 June 2017


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5 OCT 2024 AT 14:34

दूरिया कुछ कम सी लगती हैं
जो आँख बंद करते ही एक उसका चेहरा नज़र आ जाता है...

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5 OCT 2024 AT 14:33

दूरिया कुछ कम सी लगती हैं
जो आँख बंद करते ही एक उसका चेहरा नज़र आ जाता है...

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9 NOV 2020 AT 20:42

एक सुबह दिल हुआ मर जाऊ ...
पर एक ख़्याल उसका
फिर जिंदगी के और करीब ले आता है ।

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25 JUL 2020 AT 0:43

एक सफ़र की ही तो चाह थी
ज़िन्दगी ने उसमें भी दगा दे दिया ।।

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26 JUN 2020 AT 23:29

अब हम उनसे क्या कहें , उनके लिए क्या कहें
हम तो पूरे उनके हो गए है , उन पर कोई ग़ज़ल क्या करे !

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22 JUN 2020 AT 23:13

कुछ इतना सा है वजूद मेरा
अक्सर तेरे नाम से जानते है लोग मुझे ।

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22 JUN 2020 AT 0:37

वो एहसास जो मुझे पूरा करता है - पिता ।

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21 JUN 2020 AT 9:40

मेरे तुम ,
तुम्हे ख़त लिखने का सिलसिला तो चल ही रहा है साथ ही मन की उलझने भी सुलझ ने लगी है । मैं जानती हूं कि तुमने मुझे बहुत आज़ादी दी है , कुछ भी कह देने की , हर ख्याल साझा करने की , जो बहुत हद तक सही भी है । पर न जाने क्यों मुझे लगता है , ये साझेदारी मुझे केवल मुझसे करनी चाहिए । मैं जानती हूं कि तुम्हें मेरे मन की बात जानने का पूरा हक है , क्योंकि ये ख्याल तुमसे होकर मुझ तक आता है । जब ख्याल में तुम हो , तो तुमसे बात कहना लाज़िम है । पर मुझे गलत मत समझना ,कभी कभी इस साझेदारी में अजीब सी पीड़ा भरी रहती है , इसलिए नहीं कि मैं तुमसे अपना हाल बयान करती हूं बल्कि इसलिए क्यों कि कुछ बाते राज़ ही रहें और उन्हें आपके सिवा कोई जान न सके तो उसका भी अपना सुकून है । और इस सुकून के लिए तुम मुझे कभी माना नहीं करोगे ना ? तुम्हारी सड़क नहीं हूं , पर उस सड़क के बगल में एक और सड़क जाती है , शायद वही हूं । ख्याल रखना अपना मेरे "ख्याल" !
तुम्हारी मैं

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21 JUN 2020 AT 8:28

ये खेल है ऊंची कुर्सी का
जो सच को झूठ बताता है
और झूठ से अपना ईमान बचाता है
वरना बैठते तो आम लोग भी कुर्सी पर हैं
पर कौन कितना छलता है यही देखने को बनता है !

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19 JUN 2020 AT 22:48

इंसान की आज इतनी सी पहचान है ,
कि वो जीती जागती लाश है !

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